SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54. श्रेयांसनाथ जिनालय- इस जिनालय में मूलनायक के रूप में भगवान श्रेयांसनाथ की भव्य व आकर्षक पद्मासन प्रतिमा विराजमान हैं। पार्श्व भागों में भगवान आदिनाथ व पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमायें भी वेदिका पर विराजमान हैं। ____55. ऋषभनाथ जिनालय- इस जिनालय में देशी पाषाण में उकेरी गई अनेक जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। इनमें से कुछ खडगासन में व कुछ पद्मासन में हैं। सभी प्रतिमायें प्राचीन है। ____56. अजितनाथ जिनालय- इस जिनालय में भगवान अजितनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ व दो अन्य तीर्थंकर प्रतिमाओं के साथ विराजमान हैं। 57. समवशरण जिनालय- इस जिनालय में समवशरण की रचना है; जिसके मध्य में ऊपर गंधकुटी में चार दिशाओं में चार जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। यह समवशरण शोस्त्रोक्त विधि से निर्मित हैं। 58. मानस्तंभ-प्राचीन धर्मशाला के प्रांगण में मध्य में लगभग 45 फीट ऊँचे मनोज्ञ मानस्तंभ की रचना की गई है। जिसमें ऊपर चारों ओर तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। ___59. पुष्पदन्त जिनालय- यह जिनालय प्राचीन धर्मशाला में व क्षेत्र कमेटी कार्यालय के पीछे स्थित है। इस जिनालय में भगवान पुष्पदन्त की भव्य व मनोज्ञ प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है। अनेक तीर्थंकर प्रतिमायें भी इस जिनालय में विराजमान हैं। यह इस तीर्थ-क्षेत्र स्थित अंतिम जिनालय है। ___इस तीर्थ-क्षेत्र पर उदासीन आश्रम, सरस्वती भण्डार (ग्रंथागार) भी हैं। क्षेत्र पर एक अन्य तालाब, 3 कुऐं व 8 बावड़ियाँ भी हैं। क्षेत्र के पास 80 एकड़ की विशाल कृषि भूमि भी है। यहाँ प्रतिवर्ष माघ सुदी 11 से 15 तक विशाल मेला आयोजित किया जाता है। यह तीर्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की साधना-स्थली है। __ यह तीर्थ-क्षेत्र कुंडलाकार पर्वतमाला सहित विशिष्ट प्राकृतिक सुषुमा के साथ-साथ अपने प्राचीन इतिहास एवं विशिष्ट वास्तु शिल्प के अतिरिक्त अपने अतिशयों व क्षेत्र के साथ जुड़ी अनेक परंपराओं, जनश्रुति एवं किंवदंतियों के कारण बुन्देलखंड का एक अत्यन्त मनोरम एवं आकर्षक क्षेत्र है। जिसका बुन्देलखंड के समस्त तीर्थ-क्षेत्रों में अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस सबके फलस्वरूप यहां संत-संघों, शोधकार्य करने वाले विद्वानों एवं देश के कोने-कोने से वंदना करने के लिए पधारने वाले तीर्थ यात्रियों का निरन्तर आगमन होता रहता है। जिसके कारण यहां सदैव मेले जैसा वातावरण बना रहता है। इसकी वंदना के बिना बुन्देलखंड के तीर्थ-क्षेत्रों की वंदना अधूरी ही रहती है। मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 109
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy