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________________ जिनालय है। जहां मूलनायक के रूप में भगवान शीतलनाथ अन्य प्रतिमाओं के साथ विराजमान हैं। 9. अंतिम जिनालय मंदिर प्रांगण में स्थित मानस्तंभ है; जो काफी ऊँचा है व उसमें चारों दिशाओं में चार जिनबिम्ब स्थापित हैं। अन्य सूचनाएं : संपूर्ण क्षेत्र एक विशाल परकोटे के अंदर स्थित है। मंदिरों में दर्शन हेतु यात्रियों को मुख्यद्वार से कुछ जीने चढ़कर जाना होता है। 1. जिनालयों के पीछे स्थित पहाड़ी पर चारों मुनिराजों के चरण-चिह्न व उनकी आदमकद प्रतिमायें स्थापित हैं। ये चारों मुनि यहीं से मोक्ष पधारे थे। वे थे स्वर्णभद्र, गुणभद्र, वीरभद्र व मणिभद्र। यहां चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य यात्रियों की थकान को क्षणभर में दूर कर देता है। 2. इसी पहाड़ी पर प्रसिद्ध भूरे बाबा की गुफा स्थित है; जहां सांसारिक व्याधियां दूर की जाती हैं। 3. मंदिर प्रांगण में क्षेत्रपाल का मंदिर स्थित है। 4. गजरथ वेदी के समीप 24 तीर्थंकरों के चरण-चिह्न अंकित हैं। 5. क्षेत्र के सामने पूर्व दिशा में पहाड़ी पर सिद्ध कुटी है; जहां प्राचीन चरण पादुकायें स्थित हैं। 6. क्षेत्र के सामने पश्चिम दिशा में नाले के पार पर्वत पर सिद्धों के दो मठ स्थित हैं; जहां से अनेक मुनियों ने तपश्चरण कर मोक्ष प्राप्त किया था। 7. क्षेत्र पर यात्रियों की सुविधा के लिये विशाल धर्मशालाएं स्थित हैं। जहां सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। झांसी-ललितपुर से गुजरने वाले तीर्थ-यात्रियों को इस सिद्धक्षेत्र के दर्शन अवश्य करना चाहिये व अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए। वर्तमान में पावागिरि तीर्थ-क्षेत्र को लेकर एक विवाद है। खरगोन जिला स्थित ऊन-पावागिरि को भी स्वर्णभद्र आदि मुनिराजों की निर्वाण-स्थली निरूपित किया जाता है और अपने पक्ष में वहां भी अनेक तर्क व प्रभाव प्रस्तुत किये जाते। 100 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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