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प्रकाशकीय
स्वकथ्य
प्रथम खण्ड
अनुक्रम
V-VI VII-XIII
खरतरगच्छ : एक सिंहावलोकन
१-४८
जैन धर्म -१, जैन धर्म में परम्परा - भेद-२, भेदोपभेद - २, खरतरगच्छ का प्रवर्तनः एक पूर्व भूमिका-६, खरतरगच्छ का वैशिष्ट्य -८, शिथिलाचार का उन्मूलनः एक क्रान्तिकारी चरण-६, शास्त्रीय विधानों की पुनर्स्थापना - १२, शास्त्रार्थ - कौशल-१६, यौगिक शक्ति प्रयोग - १६, नरेशों को प्रतिबोध - १७, जैन संघ का व्यापक विस्तार - १६, गोत्रों की स्थापना - २०, प्रखर साहित्य - साधना - २५, साम्प्रदायिक सहिष्णुता - ४०, अन्य विशेषताएँ -४४
द्वितीय खण्ड
खरतरगच्छ का आदिकाल
४६-७८
खरतरगच्छ का काल - क्रमानुसार वर्गीकरण-५२, खरतरगच्छ का आदिकाल५३, चैत्यवासी-परम्परा-५३, चैत्यवासीः शिथिल साध्वाचार के अनुगामी-५४, खरतरगच्छ का उद्भव - ५६, शास्त्रार्थ - विजय : क्रान्ति का पहला चरण ६०, शास्त्रार्थ - विजयी : वर्धमान या जिनेश्वर ? ६५ खरतर - नामकरण-६७, खरतरगच्छ का उद्भव -काल-७१