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________________ को बिना किसी संकोच के अपना लेते। ये लोग समाज और संस्कृति दोनों के लिए घातक हो गये थे । महोपाध्याय विनयसागर का अभिमत है कि चैत्यवासियों का आचार उत्तरोत्तर शिथिल होता ही गया और कालान्तर में चैत्यालय भृष्टाचार के अड्डे बन गये तथा वे शासन के लिए अभिशाप रूप हो गये।' मुनि जिनविजय का वक्तव्य भी इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है । उन्होंने लिखा है कि शास्त्रकार शान्त्यचार्य, महाकवि सूराचार्य, मंत्रवादी वीराचार्य आदि जैसे प्रभावशाली, प्रतिष्ठा-सम्पन्न और विद्वद्गुणी चैत्यवासी यतिजन उस जैन समाज की धर्माध्यक्षता का गौरव प्राप्त कर रहे थे। जैन समाज के धर्माध्यक्षत्व का आम जनता में और राजदर• बार में भी इन चैत्यवासी यतिजनों का बहुत प्रभाव था। जैन शास्त्रों के अतिरिक्त ज्योतिष, वैद्यक और मंत्र, तंत्रादिक शास्त्रों और उनके व्यावहारिक प्रयोगों के विषय में भी ये जैन यतिगण बहुत विज्ञ और प्रमाणभूत माने जाते थे। धर्माचार्य के खास कार्यों और व्यवसायों के सिवाय ये व्यावहारिक विषयों में भी बहुत कुछ योगदान किया करते थे। जैन गृहस्थों के बच्चों की व्यवहारिक शिक्षा का काम प्रायः इन्हीं यतिजनों के अधीन था और उनकी पाठ्यशालाओं में जेनेतर गणमान्य सेठ-साहूकारों एवं उच्च कोटि के राज-दरबारी पुरुषों के बच्चे भी बड़ी उत्सुकतापूर्वक विद्यालाभ प्राप्त किया करते थे। इस प्रकार राजवर्ग और जैन समाज में इन चैत्यवासी यतिजनों की बहुत प्रतिष्ठा जमी हुई थी और सब बातों में इनकी धाक बैठी हुई थी। पर इनका यह सब व्यवहार जैन शास्त्र के यतिमार्ग के सर्वथा विपरीत और हीनाचार का पोषक था। चैत्यवासी आचार्य आचार के दृष्टिकोण से भले ही सुविधावादी १ बल्लभ-भारती, पृष्ठ, १७ २ कथा कोष, प्रस्तावना, पृष्ठ-३ ५८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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