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खरतर जिन भजन करे, खरतर साधु शील । खरतर तप ध्यानी हुआ, खरतर सर्ग सलील ॥ खरतर जग में जाणीये, श्रीजिन केरो मार्ग। खरतर साधु पूजतां, कर्म जाए सब भाग । खरतर जति जैन का, खरतर बताव तत्त्व जेह। तप ध्यान शील संतोष थी, नहिं इंद्रियों थी नेह॥ खरतर पंच व्रत पालसी, खरतर इन्द्रिय जीत । खरतर मुनि के ध्यान से, नहिं उपजे कोई भीत। खरतर मद गाले सही, खरतर पाले मार्ग। खरतर शुद्ध क्रिया करे, जाए कर्म सब भाग ॥ खरतर जाति जग में भजी, खरतर साधु जेह । खरतर क्रोड़ गौरी तजे, नहीं किसी से नेह ॥ खरतर शुद्ध संजम बिसे, चले सरदहे सार । खरतर मार्गे चालसी, जब उतरंसी पार ॥ खरतर साधु के लय के, दमड़ी चमड़ी दाम । बुद्ध नाम धराय के, नहीं सरे कोई काम ॥ खरतर माया त्यागी, खरतर तजसी क्रोध। खरतर वाणी सांच की, जीते आठ कर्म जोध ॥ खरतर जीव दया परा, खरतर दूषण टाल। खरतर शुद्ध संजम से, टले दुःख अरू काल ।। खरतर जोगी जैन का, खरतर साधु सन्त । खरतर महाव्रत पालसी, सोहि मुक्ति वधु कन्त ॥ खरतर मारग दाखियो, दाखी खरतर चाल । वाणी है जिनराज की, मत देजो कोई गाल ॥