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________________ सं० १२८६ में भी जिनेश्वरसूरि बीजापुर में ही थे, क्योंकि इस नगर में ही सं० १२८६, फाल्गुनकृष्ण ५ के दिन उन्होंने विद्याचन्द्र, न्यायचन्द्र तथा गणि अभयचन्द्र को श्रमण धर्म में प्रव्रजित किया। सं० १२८७ में जिनेश्वरसूरि प्रह्लादनपुर गये थे और फाल्गुन शुक्ला ५ को जयसेन, देवसेन, प्रबोधचन्द्र, अशोकचन्द्र और कुलभी, प्रमोदनी को दीक्षा प्रदान की। सं० १२८८, भाद्रशुक्ला १० के दिन जाबालिपुर में स्तूप-ध्वज की प्रतिष्ठा करवाई। पौष शुक्ला एकादशी को जालोर में शरचन्द्र, कुशलचन्द्र, कल्याणकलश, प्रसन्नचन्द्र, गणि लक्ष्मीतिलक, वीरतिलक, रत्नतिलक, धर्ममति, विनयमति, विद्यामति, चारित्रमति प्रभृति ने जिनेश्वरसूरि से प्रव्रज्या ग्रहण की थी। ज्येष्ठ शुक्ला १२ के दिन जिनेश्वर ने चित्तौड़ में अजितसेन, गुणसेन, अमृतमूर्ति, धर्ममूर्ति, राजीमति, हेमावली, कनकावली, रत्नावली तथा मुक्तावली को जैन भागवती दीक्षा अनुदान की। वहीं पर आषाढ़ कृष्ण द्वितीया के दिन तीर्थंकर ऋषभदेव, नेमिनाथ पार्श्वनाथ की मूर्तियों की प्रतिष्ठा की। ये मूर्तियां श्रेष्ठि लक्ष्मीधर एवं श्रेष्ठि गल्हा द्वारा अर्थप्रदान कर बनवाई गयी थी। इनमें लक्ष्मीधर ने प्रतिष्ठावसर पर भी विशेष राशि व्यय की। वि० सं० १२८६ में जिनेश्वरसूरि ने ठाकुर अश्वराज और श्रेष्ठि राल्हा की सहायता से उज्जयन्त, शत्रुजय, स्तम्भनक तीर्थ (खम्भात) में यमदण्ड नामक दिगम्बर विद्वान के साथ उनकी पण्डित गोष्ठ हुई। यहीं पर विख्यात महामात्य वस्तुपाल ने अपने कुटुम्ब के साथ आकर जिनेश्वरसूरि की अर्चना की। ऐसा संकेत पट्टावलियों में दिया गया है। - सं० १२६१ में जिनेश्वरसूरि पुनः जाबालिपुर आये थे। क्योंकि उसी वर्ष वैशाख शुक्ला दशमी के दिन जाबालिपुर में इन्होंने यति २३०
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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