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हेमश्री-इन दोनों साध्वियों को पश्चकाल में गणिनी पद से मुषित किया गया था। ___ वहां से विहार कर जिनेश्वरसूरि प्रह्लादनपुर (पालनपुर ) में आये। जहाँ पर शुक्ल चतुर्दशी के दिन पंचामती स्तूप में जिनपतिसूरि की प्रतिमा की स्थापना की।
प्राप्त उल्लेखानुसार वि० सं० १२८१ वैशाख शुक्ल ६ के दिन जाबालीपुर में जिनेश्वरसूरि ने अनेक दीक्षाएँ करवाई। दीक्षितों में विजयकीर्ति, उदयकीर्ति, गुणसागर, परमानन्द और कमलश्री, कुमुदश्री के नाम प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त ज्येष्ठ शुक्ल ६ को महावीर स्वामी के मंदिर पर जिनेश्वर ने ध्वजारोपण किया।
वि० सं० १२८३ माघ कृष्ण २ के दिन जिनेश्वरसूरि ने बाड़मेर में ऋषभदेव चैत्य पर ध्वजारोहण किया। माघ कृष्ण ६ के दिन जिनेश्वर ने सूरप्रम को उपाध्याय-पद तथा गणिनी मंगलमति को प्रवर्तिनी-पद देकर सम्मानित किया। जिनेश्वर शिष्य गणि वीरकलश, गणि नन्दिवर्धन एवं गणि विजयवर्धन का दीक्षा-दिवस एवं स्थल भी यही है। ___ सं० १२८४ में जिनेश्वरसूरि के बीजापुर जाने का प्रमाण मिलता है, जहां उन्होंने भगवान वासुपूज्य-मूर्ति की स्थापना की एवं आषाढ़ शुक्ल २ को अमृतकीति, सिद्धकीर्ति, चारित्रसुन्दरी और धर्मसुन्दरी को दीक्षित किया। ये चारों परवर्ती समय में गणि/गणिनी पदारूढ़ हुए।
गणि कीर्तिकलश, गणि पूर्णकलश तथा गणिनी उदयश्री को जिनेश्वरसूरि ने वि० सं० १२८५, ज्येष्ठशुक्ल द्वितीय को निम्रन्थ/निर्ग्रन्थनी बनाया था। ऐसा उल्लेख गुर्वावलीकारों ने किया है। ज्येष्ठ शुक्ल : को बीजापुर में ही वासुपूज्य स्वामी के मन्दिर के शिखर पर ध्वजारोपण किया।
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