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________________ जैनधर्म जैन धर्म परम श्रेय के प्रति समर्पित एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है। इसने सदा वे ही मापदण्ड अपनाये हैं, जिनमें जीवन के नैतिक मूल्यों को संवहन करने की शक्ति है। कमल की भाँति निर्लिप्त जीवन जीने की कला सिखाने वाला यही धर्म है। यह जीवन, गणित एवं विज्ञान की विजय का एक चिरस्थायी अद्भुत स्मारक है। ___ इस धर्म-परम्परा को जीवित एवं विशुद्ध बनाये रखने के लिए समय-समय पर अनेक अमृत-पुरुष हुए, जिन्होंने तीर्थंकर और आचार्य पदस्थ होकर धर्मसंघ को स्थापित एवं संचालित किया। भगवान् ऋषभदेव से भगवान् महावीर तक हुए तीर्थङ्करों एवं आचार्यों ने इस धर्म के प्रवर्तन तथा प्रसारण हेतु उल्लेखनीय भूमिका निभाई। चक्रवती भरत, सनत्कुमार, श्रीकृष्ण, श्रेणिक, चेटक, कोणिक, उदायी, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, कुमारपाल, खेमराज आदि नरेशों का इस धर्म के प्रचारप्रसार में महत् अनुदान है। वस्तुतः आचार्यों, मुनियों, साध्वियों, राजाओं, श्रावकों, श्राविकाओं के सामूहिक अथक् योगदान के फलस्वरूप ही इस धर्म का अस्तित्व निरन्तर बना रहा ।
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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