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________________ कि संघ ने मलेच्छों को जाते हुए देखा, किन्तु मलेच्छ संघ को न देख सका। इस प्रकार मलेच्छोपद्रव से जिनचंद्र ने संघ-रक्षा की। ___ सं० १२२३ में दिल्ली (दिल्ली) के महाराजा मदनपाल के अत्याग्रह से इच्छा न होते हुए भी जिनचन्दसूरि ने दिल्ली में प्रवेश किया। राजा को प्रतिबोध दिया। धर्म की प्रभावना की। जिनचन्द्रसूरि की कृपा से श्रेष्ठि कलचन्द्र करोड़पति बना और दो मिथ्यादृष्टि देवों में से एक को सम्यक् दृष्टि मिली। __ इसी चातुर्मासमें द्वितीय भाद्रव कृष्णाचतुर्दशीके दिन जिनचन्द्रसूरि स्वर्ग की ओर प्रयाणकर गये। “युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के अनुसार इनकी मृत्यु समाधिपूर्ण हुई थी इन्होंने मृत्यु से पूर्व क्षमा-प्रार्थना एवं अनशन-आराधना की थी, किन्तु अन्य पट्टावलियों के उल्लेखानुसार योगिनीछल से आपकी मृत्यु हुई थी। इनकी स्वर्गारोहण-तिथि वि० सं० १२२३, द्वितीय भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी है।' मृत्यु पूर्व आप श्री ने एक भविष्यवाणी की कि 'नगर से जितनी दूर मेरा देह-संस्कार किया जायगा, नगरकी आबादी उतनी ही दूर तक बढ़ जायेगी' अतः आपका अन्येष्टि संस्कार दिल्ली से दूर किया गया, जो महरौली में कुतुबमीनार के समीप है वहाँ एक स्तूप भी बनाया गया। यह स्थान आजकल 'बड़ी दादाबाड़ी' के नाम से प्रसिद्ध है। उनके सम्बन्ध में एक किंवदन्ती है कि जिनचन्द्रसूरि की शवयात्रा जब महरोली पहुँची तो श्रावक वर्ग ने विश्राम करने के लिए अर्थी को भूमि पर रख दिया। कुछ समय बाद जब अर्थी को पुनः उठाया गया, तो वह उठ न सकी । कहते हैं कि हाथी के द्वारा उठाये जाने पर भी वह न हिली। अतः वहीं पर उनका देह-संस्कार किया गया। इस घटना की प्रामाणिकता संदिग्ध है, क्योंकि जिनचन्द्र के समवर्ती किसी भी .: मूल सन्दर्भ द्रष्टव्य : युगप्रधानचार्य गुर्वावली, परिच्छेद ३६ से ४३ वक ................-.-२०७
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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