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________________ व उसके आस-पास के मरु-मण्डल और सिन्धुमण्डल में आपके प्रतिबोधित श्रावकों की संख्या लक्षाधिक होगी। मैं भी नाहटा बन्धुओं के अभिमत से सहमत हूँ। कारण जिनदत्तसूरि ने विक्रमपुर आदि क्षेत्रों में रोगोपद्रव शान्त किये, आश्चर्यजनक घटनाएँ घटित हुई, लगभग ५०० पुरुषों और ७०० स्त्रियों ने श्रमण मार्ग स्वीकार किया, विविध धार्मिक अनुष्ठान हुए। अहाँ विशेष धर्म-प्रभावना हुई हो, वहीं के निकटवर्ती क्षेत्रों का आचार्य से प्रभावित होना अधिक समीचीन जान पड़ता है। आचार्य जिनदत्तसूरि ने जिन लोगों को जैन बनाया था, उनमें अधिकांशतः राजपूत थे। सामाजिक व्यवस्था के लिए जिनदत्त ने नृतन जैनों को भिन्न-भिन्न गोत्रान्तर्गत आबद्ध किया। इन गोत्रों की सूची प्रस्तुत करनेवाला एक प्राचीन पत्र प्राप्त हुआ है, जो इस प्रकार है श्री सुधर्म सामि परम्परा खरतरगच्छना भट्टारक जंगम युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि प्रतिबोधित छतीस राजकुली सवा लाख श्रावक खरतर तेहना गोत्र लिखतं । १ श्री राय भणसाली मन्त्री आभू साखि गोत्र बद्ध खरतर सोलंकी राजपूत २ षड भणसाली गोत्र बद्ध खरतर देवरा राजपूत ३ कांकरिया गोत्र खरतर भाटी राजपूत ४ कमरदिया बद्ध गोत्र खरतर आकोल्या अड़क खरतर ५ मणहड़ा गोत्रबद्ध खरतर श्री पन्ना अड़क खरतर ६ नवलखा दसम नी दीहाड़ी वाला गोत्र बद्ध खरतर साहणो साथी ७ छाजहड़ दसम री दिहाड़ी वाला गोत्र बद्ध खरतर सं० १२४५ राठोड़ धांधल उधरणसाहथी खरतर ८ श्रामेचा दसम री दिहाड़ी वाला खरतर पमार राजपूत १६०
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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