SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धान्त - अध्ययन के लिए मुझे आपके पास भेजा है। यह सुनकर अभयदेवसूरि ने विचार किया कि यद्यपि यह चैत्यवासी गुरु का शिष्य है, तथापि योग्य है । इसकी योग्यता, नम्रता और शिष्टता देखकर वाचना देने को हृदय स्वयमेव चाहता है क्योंकि शास्त्र में बतलाया है— मरिजा सह विजाए, कालंमि आ गए बिऊ । अपत्तं च न वाइजा, पत्तं च न विमाणए || अर्थात् मृत्यु- समय आने पर भी विद्वान मनुष्य अपनी विद्या के साथ भले ही मर जाए, परन्तु कुपात्र को शास्त्र वाचना न दे और पात्र के आने पर उसे वाचना न देकर उसका अपमान भी न करे । इस प्रकार शास्त्रीय वाक्यों से पूर्वाग्रह का निरसन कर आचाय लभ को सिद्धान्त वाचना की अनुमति दे दी और उसके बाद अभयदेवसूरि ने जिनवल्लभ को महान् आगमज्ञ बना दिया । एक ज्योतिषाचार्य ने जिनवल्लभ को ज्योतिष का उच्चतम् ज्ञान भी दिया । अन्त में जब अध्ययन समाप्त हो गया तो जिनवल्लभ ने अभयदेव से जिनेश्वराचार्य के पास जाने की आज्ञा मांगी तो अभयदेव ने कहा, वत्स ! मैंने तुम्हें मनोयोगपूर्वक सिद्धान्त वाचना दी है । मेरा एक ही कहना है कि तुम कभी सिद्धान्त विरुद्ध आचार-व्यवहार न करना । जिनवल्लभ ने अभयदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर वहाँ से प्रस्थान कर दिया । मार्गवर्ती मरुकोट में जहाँ उन्होंने चैत्यालय की प्रतिष्ठा की थी, वहाँ पहुँचे तो मन्दिर में विधिवाक्य के रूप में निम्नलिखित पद्य लिख दिया, जिनका पालन करके अविधि चैत्य विधि चैत्य होकर मुक्ति का साधन बन सके अत्रोत्सूत्रिजनक्रमो न व न व स्नात्रं रजन्यासदा साधूनां ममताश्रयो न च न च स्त्रीणां प्रवेशो निशि । १४८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy