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अभयदेव ने जो टीकाएँ लिखीं, उनकी प्रतिलिपियाँ तैयार करवाने में अनेक दानवीर श्रावकों का हाथ रहा। प्रभावक चरित के अनुसार उनके टीका-साहित्य की प्रतिलिपियाँ तैयार करवाई धवलक नगरी के चौरासी श्रीमन्त श्रावकों ने । ' उस उसय चौरासी प्रतियाँ तैयार हुई ।
प्रभावक चरित और पुरातन प्रबन्ध के उल्लेखानुसार टीका - प्रति लेखन में तीन लाख द्रमक ( मुद्रा - विशेष ) का खर्चा हुआ । शासनदेवी द्वारा निक्षिप्त आभूषणों को श्रावकों ने नरेश भीम को प्रदान किये नरेश ने उनके बदले में तीन लाख द्रमक दिये, जिससे श्रावकों ने अभयदेव के टीका ग्रन्थ लिखवाए ।
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प्रभावक चरित का यह उल्लेख संदिग्ध है। क्योंकि टीकाएँ सं० ११२० से ११२८ तक लिखी गई, जबकि पाटण नरेश भीम का राज्यकाल सं० १०८४ तक माना गया है ।
उपाध्याय जिनपाल के मतानुसार प्रतिलेख कार्य में पाल्हउद्रा ग्राम के श्रावकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। टीका-लेखन के बाद अभयदेव पाल्हउद्रा गाँव में विचरण कर रहे थे । उस समय स्थानीय श्रावकों को अचानक सूचना मिली कि उनके माल से भरे जहाज समुद्र में डूब गए हैं। इससे वे खिन्न और उदास हो
१ पत्तने ताम्रलिप्त्यां चाशापल्यां घवलक्के । चतुराश्चतुरशीतिः श्रीमन्तः श्रावकास्तथा ॥ पुस्तकान्यङ्गवृत्तीनां वासना विशदाशया । प्रत्येकं लेखयित्वा ते सूरीणां प्रददुर्मुदा ।।
- प्रभावक चरित, पृष्ठ १६५
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