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________________ किये गये उल्लेखानुसार आचार्य अभयदेव साहित्य - साधना प्रारम्भ करने से व्याधिग्रस्त हुए थे। प्रभावक चरितकार, प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातन प्रबन्ध संग्रह आदि ग्रन्थों के अनुसार आचार्य अभयदेवसूरि टीका की पूर्णाहुति के बाद रुग्ण हुए थे 1 आचार्य मेरुतुंगसूरि के उल्लेखानुसार स्तम्भन पार्श्वनाथ- प्रतिमा के प्रकटीकरण का समय वि० सं० १९३१ है । जब कि अभयदेव ने टीका- रचना का कार्य वि० सं० १९२० से ११२८ तक किया । पट्टावलियों के अनुसार वि० सं० १९३५ ( सं० १९३६ का भी उल्लेख मिलता है ) में अभयदेव का स्वर्गवास हुआ था । उक्त उल्लेखों में यदि मेरुतुंगका संवतोल्लेख सही है तो अभयदेव ने रुग्ण होने से पूर्व ही टीका- रचना का कार्य कर लिया था । प्रतिमा- प्रगटन का संवतोल्लेख अन्य किसी प्रन्थ में प्राप्त न हो पाने के कारण मेरुतुंग के उल्लेख की पुष्टि नहीं की जा सकती । में 1 'प्रभावक - चरित' प्रन्थानुसार टीका- रचना का कार्य 'पव्यपुर' नगर हुआ था, जब कि स्वयं अभयदेव के प्रन्थों के अनुसार यह बात खंडित होती है । उनके अनुसार यह कार्य पाटण में हुआ था । उपाध्याय जिनपाल ने लिखा है कि आचार्य अभयदेव ने पाटण के 'करडी हट्टी" क्षेत्र में प्रवास कर नव अंगों पर वृत्ति लिखी थी। अभयदेव के अनुसार न केवल टीका रचना का कार्य पाटण में हुआ, वरन् पाटणके संघ १ श्री मदभयदेव सूरिनवांगवृत्तिकारः सो पिकर्मोदयेन कुष्टी जातः श्रुतदेवतादेशात दक्षिणदिग्विभागात धवलक्के समागत्य संघायात्रया श्री स्तम्भनाथ कृ प्रणंतु स सूरिरागतः । ११३१ वर्षे श्री स्तम्भनायकः प्रकटीकृताः स्तम्भपार्श्वनाथ चरित्र, उद्धतमणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ १८ तत्स्थानात् पत्तने समायाताः । करडिहट्टी वसतौ स्थिताः । तत्र स्थितैर्नवांगानां स्थानप्रभृतीनां वृत्तयः कृताः ॥ - युगप्रधानाचार्यं गुर्वावली, पृष्ठ ७ २ १२८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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