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गहन अध्ययन किया। वे महाक्रियानिष्ठ अभयदेव धर्म संघ के कमल को विकसित करने के लिए भास्कर रूप थे ।
स
वावगाढसिद्धान्त,
तत्त्वप्रेक्षानुमानतः । बभौ महाक्रियानिष्ठः श्रीसङ्घाम्भोजभास्करः || १
आचार्य अभयदेव महान् सिद्धान्तविद् थे । आगम एवं आगमेतर विषयों का उन्हें तल-स्पर्शी ज्ञान था । उन्होंने आगम - साहित्य पर जो व्याख्या ग्रन्थ लिखे, वे अपने-आप में अनुपमेय हैं । इस सम्बन्ध में प्रभावक चरित में एक घटना का उल्लेख प्राप्त होता है, जो आचार्य वर्धमानसूरि के स्वर्गारोहण के बाद घटी थी
रात्रि का समय था । आचार्य अभयदेव पत्यपद्रपुर में ध्यानस्थ थे। उनके मन में टीका-रचना के भाव पैदा हुए। इस अन्तःप्रेरणा ने ही उन्हें आगमों पर व्याख्या ग्रन्थ लिखने के लिए प्रेरित किया । प्रभावक चरित्र, युगप्रधानाचार्य गुर्वावली आदि ग्रन्थों के अनुसार यह प्रेरणा शासनदेवी की थी। प्रभावक चरित में लिखा है कि ध्यानस्थित अभयदेव के सामने देवी प्रकट हुई और बोली - महामान्य ! शीलांकाचार्य तथा कोट्याचार्य कृत टीका - साहित्य में आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग आगम की टीकाएँ उपलब्ध हैं । अन्य टीकाएँ काल के दुष्प्रभाव से नष्ट हो गईं । आप यह क्षति पूर्ति करें, संघ के हितार्थ टीका - रचना प्रारम्भ करें
विनान्येषां
अङ्गद्वयं
वृत्तयस्तत्र
कालादुच्छेदमाययुः ।
संधानुग्रहामाच कुरुद्यमम् ॥ २
अभयदेव बोले- शासनदेवी! मैं साधारण बौद्धिक क्षमतावान् । मेरे द्वारा तो आगमों को सम्पूर्णतः समझना भी दुष्कर है,
१ प्रभावक चरित, पृष्ठ १६४
२ प्रभावक चरित, पृष्ठ १६४
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