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________________ शासन-धन आचार्य धनेश्वरसूरि आचार्य धनेश्वरसूरि आचार्य जिनेश्वरसूरि के प्रमुख विद्वान शिष्यों में एक थे। जीवन-वृत्त :-धनेश्वर के जीवन-वृत्त के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। खरतरगच्छीय साहित्य में इन्हें आचार्य जिनेश्वरसूरि के प्रमुख शिष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। इनका अपर नाम जिनभद्रसूरि भी था। खरतरगच्छ में पन्द्रहवीं शदी में एक और जिनभद्रसूरि हुए हैं, जिन्होंने अनेक ज्ञानभण्डारों की स्थापना की थी। ___ साहित्य :-आचार्य धनेश्वरसूरि द्वारा साहित्य-सर्जन हुआ। जिनरत्नकोश के अनुसार धनेश्वरसूरि ने हरिभद्रसूरि चरित लिखा था। आचार्य हरिभद्रसूरि के चरित पर जो स्वतन्त्र रचनाएँ लिखी गई, उनमें यह सर्वोपरि है। इसका सम्पादन पं० हरगोविन्ददास ने वाराणसी में किया । धनेश्वर की एक प्रसिद्ध कृति है सुरसुन्दरी चरिय। यह प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें राजकुमार मकरकेतु तथा राजकुमारी सुरसुन्दरी के प्रेम का वर्णन है। इसमें १६ परिच्छेद हैं। प्रत्येक परिच्छेद में २५० गाथाएं हैं। इसमें कुल ४००१ गाथाएँ हैं। ग्रन्थान्त में १३ गाथाओं की प्रशस्ति है, जिसमें धनेश्वरसूरि ने स्वयं को आचार्य जिनेश्वरसूरि का शिष्य माना है । यह चरित चड्डावल्लिपुरी (चन्द्रावती) में सं० १०६५ भाद्रपद कृष्ण द्वितीया, गुरुवार, धनिष्ठा नक्षत्र में सम्पूर्ण हुआ। । जिनरत्नकोश, पृ. ४५६ तेसिं सीसवरो घणेसर मुनी एयं कह पायउं । चड्डावल्लिपुरी ठिओ स गुरुणो आणाए पाठंतरा ।। कासी विक्कम वच्छरम्मिय गए बाणक सुन्नोडुपे । मासे भद्दवए गुरुम्मि कसिणे बीया धणिट्ठा दिने । -सुरसुन्दरी चरिय, प्रशस्ति
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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