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________________ रचनाओं की भी प्रशंसा की है। उदाहरणतः संवैगरंगशाला के सम्बन्ध में लिखा है कि भुवन में श्रेष्ठ कीर्ति पानेवाले अभयदेवसूरि हुए । जिन्होंने कुबोध रूप महारिपु द्वारा विनष्ट किये जाते नरपति जैसे श्रुतधर्म का दृढ़त्व अंगों की कृतियों द्वारा रक्षण किया। उनकी अभ्यर्थना के वश से जिनचन्द्र मुनिवर ने मालाकार की तरह मूलश्रुत रूप उद्यान से श्रेष्ठ वचन कुसुमों का चयन कर अपने मति गुण से दृढ़ गुंथन करके विविध अर्थ-सौरभयुक्त यह आराधना माला रची है। ___ आचार्य जिनदत्तसूरि ने स्वयं संवेगरंगशाला की प्रशंसा की। उन्होंने लिखा है कि जिन्होंने (जिनचन्द्रसूरि ने) रागादि शत्रुओं से भयभीत होकर भव्यजनों के रक्षण-निमित्त विशाल किले जैसी संवेगरंगशाला की रचना की। आचार्य जिनपतिसूरि ने संवेगरंगशाला का स्मरण किया है। उनके अनुसार जिन्होंने अर्थात् जिनचन्द्रसूरि ने कलिकाल से जिनका नृत्य लुप्त हो गया था, वैसे मनुष्यों के संवेग को नृत्य कराने के लिए विशाल मनोहर संवेगरंगशाला रची। १ सिर अभय देव सूरि पत्तकिसती परं भवणे । जैग कुबोह महारिअ बिहम्ममाणस्सनरव हस्सेव ।। सुयधम्मरस दृढ़तं, निव्वत्तियमं गवित्तीहि । तसमत्यणवसओ सिर जिण चंदमुनिवरेइमाण ।। मालागारेण व उच्चिअणवरवयण कुसुमाह । मुलसुय-काणणाओ गुंथित्ता निययभई गुणेण दंढ ।। -संवेगरंगशाला १००४१-३४ २ संवेगरंगशाला विसालसालोवमा कयाजेण । रागाइवेरिमयमीय-भव्यजणरक्तखाणनिमित्तं । -गणधर सार्धशतक नतेपितुसंवेगंपुनन णां, लुप्तनृत्यमिवकालिना । संवेगरंगशाला जैन विशाला व्यरचि रूचिर ।। -पंचलिंगी विवरण ११४
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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