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________________ पाध्याय विनयसागर ने जिनेश्वरसूरि की रचनाओं एवं परवर्ती विद्वानों की रचनाओं के आधार पर बताया है कि जिनेश्वरसूरि का स्वर्गवास संवत् ११०८ से ११२० के मध्य हुआ होगा। उन्होंने “वल्लभ भारती" में लिखा है कि आपकी सं० ११०८ में रचित कथाकोष प्रकरण की स्वोपज्ञ वृत्ति प्राप्त है। अतः इसके बाद आप इस नश्वर शरीर को छोड़ चुके हों, तथा आचार्य अमयदेव स्थानांग सूत्र की वृत्ति सं० ११२० में पूर्ण की है, उसमें विद्यमान, राज्य इत्यादि शब्दों का प्रयोग न होने से संवत् ११२० के पूर्व ही जिनेश्वरसूरि का स्वर्गवास हो चुका थामान सकते हैं। समय-संकेत आचार्य जिनेश्वरसूरि का समय विक्रम की ग्यारहवीं शदी है। संवतोल्लेख के साथ उनकी प्रथम कृति अष्ट प्रकरण वृत्ति है, जिसका रचना काल ११०८ है। विभिन्न सन्दर्मों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संवत् १०८० में वे किशोरावस्था को पार कर चुके थे। आचार्य वर्धमानसूरि से जब जिनेश्वर की भेंट हुई, तब वे युवक थे। वर्धमान की शिष्यता स्वीकार कर शास्त्रीय अध्ययन में विशेष प्रगति प्राप्त की। तत्पश्चात् लगभग वि०सं० १०८०में शास्त्रार्थ विजयी बने। इस समय उनकी आयु २०-२५ वर्ष से अधिक की ही होगी। अतः यह कहा जा सकता है कि वि० सं० १०६० से पूर्व जिनेश्वर का जन्म हुआ और वि० सं० ११०८ के बाद वि० सं० ११२० के मध्य स्वर्गारोहण हुआ। महावैयाकरण आचार्य बुद्धिसागरसूरि . आचार्य बुद्धिसागरसूरि व्याकरण-क्षेत्र के अनन्य विद्वान थे। श्वेताम्बर आचार्यों में उपलब्ध सर्व प्रथम व्याकरण-ग्रन्थ की रचना करने वाले यही आचार्य हैं। खरतरगच्छ के प्रादुर्भाव में इनका एक १०४
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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