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________________ सिरि भूवलय कन्नडदोन्देरळ मूरुनाल्कैदारु । मुन्न ऐळेण्टोम्बतेम्ब । उन्नतवादंक सोन्नेयिं हुट्टितें । देन्नुवुदनुकलिसिदनु।।२०।। (खंड १ अध्याय २३) कुमुदेन्दु मुनि के अनुसार आदीष ने अपनी बेटी ब्राह्मी को उस समय सिखाए गए अक्षर कन्नड के हैं, सौन्दरी को सिखाए गए अंक एक बिन्दु को तोड कर बनाए गए हैं, ऐसा कहा ही जा चुका है। लेकिन कन्नड भाषा कितनी प्राचीन रही होगी, इसे बहिरंग रूप से परिशीलन किया गया है । कन्नड भाषा यदि रही होगी तो भी सातवीं सदी से पहले बादामी चालुक्य के द्वितीय पुलकेशी के चाचा मंगलेश, के मेण बस्ती, विष्णु गवि के शासन से भी पहले लिपि बध्द नहीं हुई थी ऐसा विद्वानों ने निर्णय दिया है । लगभग इसी चालुक्य वंश के विजयादित्य ( सन् लगभग ४७५ ) की प्राणवल्लभा वेश्या विनापिटी के महाकूट के एक शासन को यहां उदाहरण के रूप में उस समय के कन्नड गद्य को प्रस्तुत किया है १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. स्वस्ति विजयादित्य सत्याश्रय पृथ्वी वल्लभ महाराजधिराज परमेश्वर भटा र प्राणवल्लभे विनापोटी गळ एन्पोर सूळे यार इव मुदुतायिवर रेवमञ चळगळवरा मगळिदर कुचिपोटिगळवरा मगळु विनापो टिगळ इल्लिये हिरण्यगर्भमिट्टु एल्ला दान मुं गोट्टु देवना पीठमान किसुविने कट्टि बेळ्ळिया कोडेयाछिसी मञ्ङ्लुळ्ळे अ शतं से त्र गोट्टु इदानदान पञ्चमहापातकनक्कु 96 ( इंडियन अंटिक्वरी सं १०. पृ. १०३ )
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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