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सिरि भूवलय
हैं, ऐसा कहने में बाधा नहीं है। इस तरह का एक विश्व व्यापी कन्नड ग्रंथ कन्नड के सिवाय विश्व की किसी और भाषा में नहीं है, ऐसे ग्रंथ को पढने वाले भी नहीं है। इस पृष्ठ भूमि में धन की आशा न कर, प्रशंसा से पुलकित न हो, आलोचना से विचलित हुए बिना कन्नडिगा होने का अभिमान रख, कन्नड की कृति को भारत में ही नहीं विश्व में भी सहृदय विद्वानों के द्वारा विश्व भर में समर्थन करवाने वाले श्री यल्लप्पा शास्त्री जी कन्नड के, कन्नडिगाओं के लिए संपत्ति हैं ऐसा समझे तो गलत नहीं होगा ।
एक और बात इस काव्य के सम्पादन के कार्य के लिए मैं सर्वथा योग्य नहीं हूँ । इसको अनुशीलन कर मेरे कन्नड के भाई- बहनों, माता-पिता, और बुजुर्गों से मेरी कुछ गलतियों के लिए क्षमा माँगने की योग्यता भी मुझमें नहीं है मुझे कोई उपाधि प्राप्त नहीं है मैं एक ग्राम वासी कन्नडिगा हूँ। श्री शास्त्री जी ने ग्रंथ का अनुशीलन कर भरत खंड में जाति मत - भेद न रख संचार कर राष्ट्राध्यक्ष श्री बाबू राजेन्द्र प्रसाद जी से लेकर अनेक विद्वानों अधिकारियों से मिलकर बात कर विश्व में अति प्रमुख अंतराष्ट्रीय विद्या संस्थाओं से लेकर अनेक प्रमुख संस्थानों और अनेक प्रमुख स्वदेशी-विदेशी पत्र-पत्रिकाओं के आदर का पात्र बन, अनेक अनेक भारतीय विद्वानों का समर्थन प्राप्त सोकर भी, इस कार्य को मुझे ही क्यों सौंपा यह मुझे समझ में नहीं आया । परन्तु यह कार्य कन्नड का है और मैं कन्नडिगा हूँ इसी कारण मैंने यथा संभव यह कार्य करने का प्रयत्न किया है
राष्ट्रकूट के चक्रवर्ती अमोघ वर्ष ने इन पाँच उपाधियों को प्राप्त किया ऐसा कुमुदेन्दु कहते हैं
पदविगळैदु संजनिसिद राजिगे । स धवल दादिम वृध्या ।। स्पदनागे एरडने जयधवलांकद । बदिगे मूरने महाधवल || दीनत्ववळिसुत जनतेय पालिप। भूनुतवर्धमानांक ।। आ नम्म जनतेय जयशीलधवल द। शाने पदवियदु नाल्कु ॥ वशवादतिशयधवल भूवलयद । यशवागे ऐदने अंक || रसविस्मयवाद विजयधवल विन्तु । यशद भूवलयद भरत ।।
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