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________________ सिरि भूवलय से पहले ही पुरानी कन्नड थी और वह कोई संग्रहनीय नहीं है। कुमुदेन्दु पुराने कम्मड का नाम लेकर अपने काव्य को दोनों को मिलाकर प्रौढ - मूल दोनों के ताल-मेल के लिए लिखते हैं ऐसा कहते हैं। अनेक स्तरों पर उत्तर में प्राचीन कन्नड कठिन और दक्षिण में आज की भाँति ही सरल रही होगी कह सकते हैं। समस्त कर्नाटक के प्रतिनिधि रहे यह कवि दोनों पध्दतियों में समान साँचे में ढाल कर साधरण जनता को अन्याय न होने के भाँति लिखा है । इस सर्व भाषामयी काव्य में केवल कन्नड ही नही हमारे देखे गए सभी भाषाओं में जनता को कठिनाई न हो इस का ध्यान रखा गया है ऐसा कह सकते हैं । भूवलय के छंद के विषय में दो बातें लिपिय कर्माटकवागले बेकेम्ब । सुपवित्र दारिय तोरी ।। मपताळलयगूडी “दारुसाविरसूत्र ” । दुपसंहारसूत्रदलि ।। लिपि का कर्नाटक का होना आवश्यक है सुपवित्र मार्ग को दिखा, ताल लय के साथ ६००० सूत्रों के उपसंहार सूत्र में वरदवागिसि अतिसरल्वनागिसि । गुरु गौतमरिन्दा हरिस । सर्वांकदरवतनाल्कक्तारदिन्दा । सरिश्लोक “आरुलक्ष” गळळ ॥ ७–१२३.१२४॥ अति सरल रूप से गुरु गौतम के द्वारा प्रवाहित सर्वांक ६४ अक्षरों से छह लाख श्लोकों की रचना की । कुमुदेन्दु अपने काव्य को ताल-लय के संयोग से ६००० सूत्रों से ६ लाख श्लोकों को रचा है ऐसा कहते हैं । कुमुदेन्दु के शिष्य नृपतुंग “कवि राज मार्ग " मे पूर्व के कवियों “ चत्ताण बेदण्ड” नाम की पद्धतियो को मान कर साहित्य की रचना की है ऐसा कहते हैं । नृपतुंग ने “ चत्ताण बेदण्ड” का नाम लेकर पूर्व कवि मान्यता देकर, स्वयं उसने अपने काव्य में, वह भी कन्नड लक्षण ग्रंथ में, उसको लिखा ही नहीं । कुमुदेन्दु ने पूर्व कवि मान्यों के शुध्द कन्नड के शब्द गणों, चत्ताण बेदण्डों का उपयोग कर अपने काव्य को रचा है। कुमदेन्दु “चत्ताण” चार भागों (चतुस्थान ) 83
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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