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सिरि भूवलय
हर्ष के साथ प्रभाव सेन गुरु के द्वारा विरचित पाहुड । भूमि की शुद्धता रक्षा के लिए । तीव्र गति से अक्षरों को द्वितीय गणधर ने हरशिवशंकर गणित में बाँधा ।
इस प्रकार उस मंगल प्राभृत को पहले ही कहेनुसार संस्कृत प्राकृत कन्नड में लिखा गया है (तीनों को मिलाकर) यह ग्रंथ लगभग सन् ५० में रचा गया होगा। इन दो ग्रंथों को इसी परंपरा के शिष्य भूत बलि ने भूवलय के नाम से
भूत बल्याचार्यनवन भूवलयद । ख्यातिय वैभव भद्र ।।
नूतन प्राक्तनवेरडर संधिय । ख्यातिय सारुव सूत्र ।। ९ - २२८ ॥ विख्यात वैभव भद्र का नूतन प्राचीन को मिलाकर ख्याति प्रचारित करने वाला सूत्र, भूत बल्याचार्य का भूवलय ।
इस भूतबल्याचार्य के भूवलय को, उसके नूतन प्राप्तों को आदर्श रूप में कह कर कुमुदेन्दु अपने गुरु वीर सेनाचार्य के
छाएयोळा चार्यनू सुरिद वाणिय। दायवनरीयुत नानु।। आय मंगल पाहुडद क्रमांकद । दायदि कुमदेन्दु मुनि ।। ९-१९७।। कुमुदेन्दु मुनि ने आचार्यों की वाणि के लाभ को समझ कर उसका अनुसरण किया ।
अंकाक्षर विज्ञान से भरित विश्व सेना भूतबलि द्वारा रचित तीन भाषाओं के भूवलय को परिष्कृत कर पुरुषोत्तम महावीर की भाँति ही सर्वभाषा मयी भाषा कन्नड के प्रधानता से रचा । कुमुदेन्दु के समय सन् ८०० से पहले विश्व सेन के समय सन् ४०० के लगभग भूत बलि ने अपने भूवलय को रचा होगा ऐसी कल्पना करनी होगी।
भूवलय का भाषा और छंद
भूवलय के कवि कुमुदेन्दु के समय में कन्नड, दक्षिण, उत्तर शैली दोनों रूपों में थी, ऐसा कुमदेन्दु के शिष्य अमोघ वर्ष अपने कवि राज मार्ग में कहते हैं । इस के लिए कोई उदाहरण तो वह नहीं देते, और कहते हैं कि मेरे समय
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