________________
( सिरि भूवलय
ने दान दिया ऐसा ही है। पदेशबंधाधिकार में मलधारि मुनीन्द्र के शिष्य माघणंदी को सेन ने दान दिया कहा गया है। अर्थात माघणंदी गुणभद्र, मेघचंद्र तथामलधारी के शिष्य थे। भूवलय की प्रशस्ति के अनुसार गुणभद्र सूरी के शिष्य माघणंदी हैं। यह महा बंध प्रति से संबंधित है। भूवलय को मल्लिकब्बे ने प्रति बनावाई वह प्रति ही अभी प्राप्त कागज की प्रति है ऐसा कहने के लिए आधार नहीं है। शांतिनाथ अथवा शांतिसेन नाम है ऐसा श्री भुजबलि शास्त्री जी ने कहा है । परन्तु केवलसेन, रूपजितसेन, ऐसा भी है, अमरावती में संपादित ग्रंथ से ज्ञात होता है। उदयादित्य शांति सेन के काल के विषय में शासन नहीं मिलते । अनेक मेघचंद्र- माघनंदी १२-१३ सदी के शासन में उक्त हैं। बन्नि केरे (तालाब) के शुभचंद्र के विषय के अनेक शासन सु.सन् १११८ से मिलते हैं। श्री भुजबलि शास्त्री जी धवळ जयधवळ टीकाओं की प्रति का,समय शा.श.७३८, ७५८ ऐसा लिखने में शायद कोई त्रुटि होगी । बहुशः शक १०३८, १०७८ (सन् १११६,११३६) कहा जाय तो शुभचंद्र शासन के समय काल से ठीक होगा। महाबंध सत्तकम्म पंजिका प्रतियाँ उसी समय में उत्पन्न हो, उसी सेन मल्लिकब्बे प्रशस्ति भूवलय से अन्वय (संबंधित) है ऐसा तात्कालिक रूप से निर्धारित करें तो, इंद्रनंदी(सन् ९३०) और सन् ११२० के अंदर भूवलय रचित हुआ होगा, कह सकते हैं। अर्थात अमोघवर्ष शिवमार (सन् ८१५) के कहे के लिए परिहार को ढूँढना होगा । यह अद्भुत ग्रंथ संपूर्ण होकर प्रकटित हो तो काल निर्णय करने में सहायता होगी।
७. एस.श्रीकंठ शास्त्री
जैज्भगवद्गीता: कर्मवीर, २७-८-१९६१ आदरणीय ग्रंथ
लगभग आठवीं शताब्दी तक भगवद् गीता जैनों के लिए भी आदरणीय ग्रंथ था। कुमुदेन्दु के सिरि भूवलय में अनादि गीता को वृषभ तीर्थंकर ने भरत बाहुबलि को उपनयन (जनेऊ) में बोधित कराया यह परंपरागत रूप से प्राप्त नेमितीर्थंकर के काल में नेमिनाथ कृष्ण बलराम को बोधित हुआ कृष्ण ने अष्ट भाषाओं में समझने की रीति में अर्जुन से कहा व्यास जी ने संस्कृत में जयख्यान नाम से गीता को भारत(महा) में मिलाया । इस जयख्यान के तीन अध्याय के गीता को कुमुदेन्दु ने दिया। इन तीन अध्यायों के प्रथमाक्षर स्तंभ गीता के तीन श्लोक बने हैं । 'ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म' “ममयोनिर्महद्ब्रह्म” “तत्रिगुह्यतरं
-464
464