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(सिरि भूवलय
मयूरखंडियोसूलभं राष्ट्रकूट की राजधानी थी ऐसा फ्लीट का कहना है। परन्तु उससे पहले ही मान्यखेट ज्योतिषियों की दृष्टि में मुख्य स्थल था, ऐसी जानकारी मिलती है ।
भूवलय की प्रति में मल्लिकब्बे की प्रशस्ति(प्राचीन हस्त लिखित पुस्तकों के आदि और अंत की कछ पंक्तियाँ जिनमें पुस्तक के कर्त्ता विषय काल आदि का कछ पता चलता है उसे प्रशस्ति कहते हैं) मूडबिद्रि के महाबंध की प्रति से लेकर जोडा होगा। इसमें भूवलय की प्रति को दान दिया ऐसा नहीं कहा गया है। श्री भुजबलिशास्त्री जी के कन्नड ताड प्रति ग्रंथों के कोश में निम्न लिखित अंश दिखते हैं ____ पृष्ठ २५७. मूडबिदि, सिद्धांत बसदि, प्रति २२, भूतबलि का महाबंध, लिपि-प्राचीन कन्नड, प्रति लिपिकार-श्री उदयादित्य अपने राजा शांति सेन की पत्नी मल्लिकब्बे देवी के लिए रचा। श्रुतपंचमी के उद्यापन में सिद्धांत मुनिमाघनंदी को दान दिया गया। ___ प्रति २५. लद्धिसार नेमिचंद्र का ग्रंथ, प्राचीन कन्नड लिपि. प्रति लिपिकार-रेचण्ण. माघनंदी को प्रति का दान।
प्रति २६. सत्तकम्म पंजिका- प्रति लिपिकार- उदयादित्य, राज शांतिनाथ के लिए माघनंदी को दान।
पृष्ठ २५६. प्रति १५. वीरसेन का धवळाटीका, गंडरादित्य सेनापति मल्लिदेव ने कुलभूषण मुनि को दान दिया । प्राचीन कन्नड लिपि । ____ प्रति १७. धवळाटीका (षटखंडागम) मंडलिनाडु भुजबलि(?) , गंगपेर्माडि की बुआ देवीयक्का, कुपणपुर के आणिगवंश के जिन्नप्प द्वारा प्रति बनवा कर बन्निय केरे (तालाब) जैन चैत्यालय में मुनि शुभचंद्र को दान में दिया शालिवाहन शक ७३८(?)।
पष्ठ २५५, ८ वीरसेन जिनसेन का जयधवळाटीका प्रति लिपिकार भुजबल अण्णचिक्कम्मय और बल्लिसेट्टि पद्मसेन को दान दिया शालिवाहन शक ७५८(?)
प्रतियों को उदयादित्य और रेचण्ण माघनंदी, शांतिनाथ(सेन) मल्लिक्ब्वे के समकालीन हैं । महाबंध सत्तकर्म पंजिका और लब्धिसार की रचना की। महाबंध के ठिदिबंधादिकार की समाप्ति पर गुणभद्र सूरी के शिष्य माघ नंदी, उसे सेन मल्लिकब्बे ने शास्त्रदान किया ऐसा कहा गया है। अनुभाग बंधाधिकार में मेघचंद्र के शिष्य माघनंदी को सेन-मल्लिकब्बे
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