SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय - भूवलय में कुमुदेन्दु ने ऐदु परमेष्ठि बोल्लि (पाँच परमेष्ठि कथा) को कहा है। (अध्याय १३. २१३) शक ११९५( बाणपदार्थ कळाअधर), अंगीरस कार्तिक शुद्ध पंचमी में बालचंद्र पंडित देव ने (क.क.च. १ पृ. २९१,पृ११) द्रव्यसंग्रह सूत्रों के लिए कर्नाटक लघुवृत्ति को पंच परमेष्ठियों की बोल्लि(कथा) ऐसे गद्य ग्रंथ को रचित किया है। (सन् १२७३-१२७५) बालेंदुबुध कहकर स्वयं को निर्देशित करते हैं। कुमुदेन्दु के कहेनुसार बोल्लिपद्धति बालचंद्र के गद्य ग्रंथ कि लिए आदर्श रहा होगा । कुमुदेन्दु अक्षर संख्या को कहते समय त्रिषष्टि श्चतुष्षष्टिा वर्णाः शुभमते मताः प्राकृतेसंस्कृतेचापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा अकारादि हकारान्तां शुद्दां मुक्तावलीमिम स्वरव्यंजनभेदने द्विधाभेदमुपेयुषीम।। अयोगवाहपर्यन्तां सर्वविद्यासुसंगताम अयोगाक्षर संभूतिं नैकबीजाक्षरैश्चिताम ततो भगवतो वक़्तान्निः सृताक्षरावळीम नम इति व्यक्त सुमंगलां सिद्धमातृकाम ॥ भूवलय ५ १३८-१४५ अर्थात त्रिषष्टि चतुर्षष्टि वर्ण शुभमत से प्राक्त संस्कृत के अकार हकार स्वर व्यंजन भेदों से कहे सर्वविद्या सुसंगत योगाक्षर को बीजाक्षर में निश्चित कर ब्राह्मी लिपि द्वारा गणित संख्या में विवरित सुमंगल काव्य । इस जैन ग्रंथ के श्लोक का उदाहरण दिया है। थोडा बहुत पाठ भेद के साथ यह श्लोक शंभु रहस्य, मातृकार्णवतंत्र, अग्नि पुराण, इत्यादि ग्रंथ में भी दिखाई देते हैं (श्री विद्यार्णवतन्त्र १ पृ ६३) सिद्ध मातृकासोत्र शाक्ततंत्र में दिखाई देते ही नहीं है वरन बौध्दों में भी रह आज भी जापानी में पित्तोन नाम की वर्णमाला है (आर्ट एंड थॉट) सिद्धाहि शुद्दाकाः सिद्धो वर्णसमाम्मायः ऐसा कातंत्र व्याकरण में भी बहुशः ऐंद्रव्याकरण में भी है। कुमुदेन्दु ६४ अक्षरों को इस प्रकार कहते हैं - -453
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy