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________________ सिरि भूवलय इस प्रकार कुमुदेन्दु का ग्रंथ जिनसेन के धवळाटीका के रचनानंतर (सन् ८३७) आदि पुराण के प्रचार में आने के बाद बंकेश के तलकाडु दिग्विजय से पहले, सैगोट्ट शिवमार के जीवित रहते (लगभग ई.पू. ८५० में ? ) रचित हुआ होगा । गंग प्रथम शिवमार (लगभग ई.पू. ७१३) को गोट्टिग उपाधि नहीं दिखाई देता । कुमुदेन्दु नृपतुंग नाम को कहे भी हो तो अमोघ कहने के कारण आठवीं सदी में मान्य खेट में नृपतुंग से पहले एक अमोघ नाम का राष्ट्र कूट राजा रहा होगा ऐसा कहने के लिए कोई आधार नहीं है। भूवलय प्रति के विषय में चर्चा करना आवश्यक है। संपादक के द्वारा उपयोगित कागज़ की प्रति में समय को सूचित नहीं किया गया है। मल्लिकब्बे प्रतिलिपि ही उनके पास है ऐसा ही कहा गया है। सेन की सती मल्लिकब्बे अपने परम गुरु गुणभद्रसूरी के शिष्य माघनंदी को श्री पंचमी के उद्यापन के समय में शास्त्र दान किया । यही निर्देश मूडबिद्री के लोकनाथ शास्त्री जी के कथनानुसार महाधवळ प्रति के अंत में भी है (भुजबल शास्त्री केटलॉग बनारस १९४८) । यह महाबंध का निर्देश ही है न की भूवलय का । यह गुणभद्र और माघनंदी कौन से गण गच्छ के हैं इसे संपादक ने निरूपित नहीं किया है मूडबिद्री की हस्त प्रति समुदाय में कोपणतीर्थ के श्रीधराचार्य के शिष्य माघनंदी सैद्धान्तिक शिष्य यकीर्ति रचित पुष्पांजलि काव्य नाम का ग्रंथ है। यह दो बलदेशाधिपति कद्रुभूपाल नामांकित दद्दपश्रेष्ठी द्वारा प्रवर्तित हुआ। दंष्ट्रोपलक्ष्मीतमहाकडगस्य वंशे । जातः समौक्तिक इवामल कद्रुभूपः इति स्थावर कुपणतीर्थनिवासि जंगमतीर्थ श्रीधरदेव परमभट्टारक शिष्य श्री माघ सैद्धान्ति चरणसरसीरुह चंचरीकेणो यकेर्तिना (?) विरचिते पुष्पांजलिमहाकाव्ये दद्दपश्रेष्ठ प्रवर्तिते श्रीमद्दोद्दबल देशाधिपति कद्रुभूपाल नामांकोते. यह माघणंदी, श्रीधराचार्य के शिष्य होने के कारण भूवलय प्रति के गुणभद्र सूरी के शिष्य माघनंदी नहीं है । श्रवणाबेळगोळ ४२ (४६) शासन में श्रीधर के शिष्य माघनंदी, उनके शिष्य आचार्य नागदेव, माघनंदीके शिष्य चंदकीर्ति के निसिदि (समाधि) को बनवाया, ऐसा कहा गया है। निर्णय सागर प्रेस धवळ ग्रंथ प्रति के लिए मूल "मंडलिनाड" श्री भुजबल गंग पर्माडिदेवरत्तेयरुमप्प दवि. “देवियक्क,” श्रुतपंचमी के उद्यापन में अपने गुरु, बन्नियकेरे के उत्तांगचैत्यालय के दिवाकरणंदि सिध्दांत रत्नाकर के शिष्य ( मलधारिय) शिष्य शुभचंद्र को दान दिया गया धवल 451
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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