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सिरि भूवलय प्रस्तावना
सिरि भूवलय यह जैन ग्रंथ, विश्वमें एक अति प्राचीन. अदभूत और महत्वपूर्ण माना जा सकता है। यह ग्रंथ आदिवृषभदेवजी ने सौंदरी को उपहार के तौर पर दिया हुआ था।
ॐ
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१. यह ग्रंथ संख्याओं से लिखा हुआ है। ये संख्याएं ही 64 ध्वनियां होकर ब्राम्हि लिपि के रूप में है। अतः उस समय से इसे महत्वपूर्ण बताया गया है। विश्व की समस्त भाषाएं कला, साहित्य, गणित, विज्ञान, वैद्यकीय, ज्योतिष्य, अणुशास्त्र आदि इस विषय के लिए आवश्यक विषय और इन विषयों में अप्राप्त और नष्ट हुए अनेक मौलिक ग्रंथ भी सिरिभूवलय ग्रंथ में समायें हुए है। २. इस महान साहित्य में अपने आप उत्पन्न अनेक साहित्य की पहचान से वेदांत वैध, गणित, रसायनशास्त्र, ज्योतिष अणुशास्त्र, खनिजशास्त्र, जीवशास्त्र, ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, भगवदगीता, तत्वार्थसूत्र, ऋषिमंडल, और संस्कृत प्राकुत और अनेक भाषाओं के अपूर्व श्लोक समायें हुए है । ३. जैनचार्थ कुमुदेंदु आचार्य ने क्रि. ग. 689 समीप सिरिभूवलय ग्रंथ का सिर्फ अंकों के व्दारा ही प्रचार किया। कुमुदेंदु आचार्य का प्रदेश नंदिदुर्ग के पास यलवल्ली नाम से जाना जाता था। इसे 'यलवभू' कहकर उसे पीछे से पढकर 'भूवलय' हो सकता है। ऐसी प्रतीति मिली है कि इस प्रदेश में आचार्य ने 1500 शिष्यों को इकट्टा करके उन्ही से यह शास्त्र लिखवाया गया था । सिरि को पीछे से पढने से रिसि याने मुनि मतलब होता है । ४. कुमुदेंदु आचार्य के अनुसार आदि वृषभदेवजी ने अपने पुत्र भरत और बाहुबली को लौकिक साम्राज्य और परमार्थिक ज्ञान देने के पश्चात शेष ज्ञान साधन के रूप में जो अंक और अक्षर विधा है, उसे सौदरी और ब्रम्ही नामक दो लडकियों को दे दिया। यह शेष विधा ही अब बचा हुआ अंकाक्षर का ज्ञानवाहिनी 'सिरिभूवलय' है । ५. कुमुदेंदु आचार्यजी ने इस ग्रंथ की रचना नवमांक प्रणाली (To the Base 9) के आधार पर की है। विश्व में हम दशमांक प्रणाली इस्तेमाल करते है। यह नवमांक एणाली अंक संख्या 'Base 9' को अपनाकर आई है। आज की गणक यंत्र की दुनिया मे "Base 2" अपनाया है (01) [open gate (0) Close gate ( 1 ) ].
उदाहरण के लिए :
110 102 101 100
=
= 1 1 0 =110
इस अंकों को नवमांक पधदति में इस प्रकार अपनाना चाहिये
92
91
9
3
81
1
90
1
2
फ्र
Base 9 converted back to Base 10 = 1x81 + 3x9+2+1=110
इस तरह यह ग्रंथ भी उस काल में गणक यंत्र (Computer coded all written in multiples of nine). नवमांक पध्दति में लिखा soft ware इसि पद्धति को इस्तेमाल कर के अत्याधुनिक गणक यंत्र काम करता है। इसमे Base 2 का उपयोग किया है।
उदाहरण के लिए :
26 25 24 23 22 21 20 64 32 16 8 4 2 1 = ( 110 1110) = Total base 2
11010 H = (1101110),
423
110
इस नवमांक पध्दति को सिरिभूवलय में उपयोग किया है। कुमुदेंदु आचार्यजी ने इस भूवलय को चक्रबंध पहेली (Cross word puzzle) के रूप में 27x 27 चौकोर मकान में रचा है। इसे अपने शिष्यों द्वारा 1270 पृष्ठों में लिखवाया है, ऐसा ज्ञात होता है। हर चौकोर मकान 1 से 64 अंको से भरा है। इस अंको ध्वनि रुप में परिवर्तन करने से अनेक ढंग से पढ सकते हैं। यह 1 से 64 ध्वनियो का विन्यास इस प्रकार है ।
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६. 27. स्वर (हस्व, दीर्घ और लुपृ), 25 व्यंजन, 8 अवर्गीय और 4 अयोगवाह (0 बिंदु, विसर्ग, उपधमानीय और :: जिव्हामूलिय ) हस तरह पढने से कन्नड भाषा में श्लोक आयेंगा। आचार्य आचार्य कुमुदेंदुजी बताया है कि अगर इन श्लोकों को अनेक दंग से पढने से सभी (718 भाषा) भाषाओं का दिव्य साहित्य का ज्ञान हो जायेंगा। ७. इस ग्रंथ का साहित्य 6,000 सूत्रों में, 12,000 चकोमें 6 लाख श्लोकों से परिपूर्ण 9 खंडो में पूर्ण लिखा गया है। 1953 में स्वर्गीय पंडित यल्लप्पा शास्त्रीजी ने 33 अधयाय प्रथम और दितीय भागों में कन्नड भाषा में मुर्दित करके प्रकाशन लिया। भारत के कन्नड राष्ट्रधियक्ष डॉ. बाबू राजेंद्र प्रसादजी ने यह ग्रंथ दुनिया के आचार्य जनक वास्तुओं में दसवां है। उनके आदेशानुसार इसे न्याशनल आरकैवसू (National Archives) में मैको फिल्म (Microfilm) के द्वारा शास्वत रूप में रखा गया है। भारत के अनेक अनेक विध्यानों ने इस ग्रंथ के बार में अपने अनमोल अभिप्राय व्यक्त किये है। ८. क्या दुनिया के सभी भाषाएं 'कर्नाटक से उत्पन्न हुए ? इस बात को सिरि भूवलय में उल्लेखित लिया हे कर्ण कान अटतीतिः अटक कान से सुनने के लिये कोई भाषा मधुर हो, वह 'कर्नाटक' इस तरह धोषित किया गया है। " गोलाकार, मुलायम, लिपि ही कर्नाटक " एक शून्य को भंग करके चारों तरफ धूमाकर निर्माण किया हुआ यह काव्य 'सिरिभूवलय' । इस ग्रंथ में सिर्फ एक शून्य में समस्त विश्व समा गया है। 'सिरिभूवलय' में प्रसारित सब धर्मों का सार शून्य
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