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सिरि भूवलय
हिन्दुस्तान (दिल्ली, ६ दिसम्बर १९५१)
दिल्ली, बुधवार कल रात्री के आठ बजे भा.दि. जैन महासभा कार्यालय मारवाडी कटरा नई सडक दिल्ली में श्री यल्लप्पा शास्त्री जी द्वारा बंगलोर से लाए गए भूवलय सिद्धांत ग्रंथ के आधार पर किए गए अनुसंधान रूप ३१ मानचित्रों की प्रदर्शनी का उद्घाटन श्री राघवन जी एस. एस. आर. कामर्स एंड इंडस्ट्रीज़ द्वारा हुआ। नवभारत टाइम्स (दिल्ली ९ दिसम्बर १९५१) सर्व ज्ञान भंडार भूवलय सोमसुन्दरं द्वारा लिखित
विश्व भर के ज्ञान विज्ञान की कोई शाखा ऐसी नहीं जिस पर भूवलय और विजय धवल नाम के इन ग्रंथों में विस्तृत प्रकाश नहीं डाला गया हो साथ ही मानव जाति की कुल ७१८ भाषाओं में से प्रत्येक भाषा में ये ग्रंथ पढे जा सकते हैं यदि उनमें निर्धारित फार्मूले (युक्ति) के अनुसार उनका अध्ययन किया
जाए
इस भूमिका के साथ बंगलूर के जैन पंडित श्री यल्लप्पा शास्त्री जी ने उपरोक्त दोंनों ग्रंथों के बारे में मेरे प्रश्नों का उत्तर देना आरंभ किया तो मैं अविश्वास पूर्ण मुस्कुराहट के साथ सुनने लगा परन्तु जब शास्त्री जी ने मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर दे चुके तो तब मेरा अविश्वास विस्मयपूर्ण श्रद्धा में परिवर्तित हो गया ।
ज्ञान- विज्ञान का भंडार
शास्त्री जी का कहना है कि ज्ञान-विज्ञान का कोइ विषय ऐसा नहीं है जिसका विश्व विवेचन इस ग्रंथ में न किया गया हो । जीव विज्ञान से लेकर परमाणु वाद तक (ऐटोमिक थियरी) आयुर्वेद से लेकर लोह विज्ञान तक और आकाश विज्ञान से लेकर ज्योतिष्य शास्त्र तक सभी विज्ञानों का यह आगार है। मध्य कालीन भारत की अकर्मण्यता को देखते हुए शास्त्री जी के इस दावे पर विश्वास करना कठिन प्रतीत होता है कि आइन्सटाइन सिद्धांत जैसे नवीनतम पाश्चात्य सिद्धांत से हमारे मध्य कालोन पूर्वज परिचित ही नहीं थे अपितु उसका विशद
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