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=( सिरि भूवलय -
कर दुनिया के ७१८ भाषाएँ इस में समाहित हैं । इस साहित्य में ३६३ तात्विक विधान, ६४ कलाएँ समाहित है ऐसा इस ग्रंथ के परिचय में कहा गया है । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपने राष्ट्राध्यक्ष के समय काल में इस ग्रंथ के परिचय को जान कर इसे सरकारी प्रोत्साहन से जन सामान्य को इस ग्रंथ का लाभ प्राप्त हो ऐसा आशय व्यक्त किया था । अनेक ख्यात विद्वानों ने भी इसी आशय को व्यक्त किया था । आज तक इस दिशा में कोई भी सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है ऐसा अप्रेल २३ को बंगलोर के गोखले सार्वजनिक संस्था भवन में
अनंतरंग प्रतिष्ठान के द्वारा आयोजित सिरि भूवल्य जयख्यान भारत भगवद गीता अंग्रेजी पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कृति के विषय पर बोलते हुए साहित्यकारों, संशोधकों, पत्रकारों आदि ने कहा । इस अद्भुत कन्नड ग्रंथ को जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए तथा उसको पढने के विधान को समझाने के लिए प्रयत्न करना अति आवश्यक है भी कहा गया । गोखले संस्था के अध्यक्ष श्री निटूर श्री श्रीनिवास जी ने सभा की अध्यक्षता की ।
छह लाख पदों के साथ यह कन्नड ग्रंथ अनेक शास्त्रों के सार को समाहित किए हुए हैं ऐसा संशोधक साहिति प्रो.टी.केशव भट्ट जी ने कहा । दुनिया के किसी भी भाषा में नहीं है ऐसी एक श्रेष्ठ कृति सिरि भूवलय है उन्होंने ऐसा वर्णन किया इस में समाहित ज्ञान का भंडार जन सामान्य के लिए लभ्य हो तो भारत संपूर्ण मानव लोक के लिए ऐतिहासिक उपकार करेगा ।
__ इस अद्भुत ग्रंथ के प्रति, आसक्ति रखने वालों ने जो रहस्मय चुप्पी साध रखी है उसे भेद कर, इसके लाभ को जन सामान्य तक पहुँचाने का प्रयत्न करने के लिए कन्नड साहित्य परिषद को आगे आना चाहिए ऐसा पत्रकार श्री वैकुंठराजु ने जोर दिया ।
भाषातज्ञ, विद्वान, तथा संशोधक के ध्यान देने की अनेक बातें इस ग्रंथ में छुपी है । दिल्ली में जो हस्त प्रति है उसे मँगवाना होगा । यल्लप्पा शास्त्री जी के बच्चों के पास इस ग्रंथ की जो मुद्रित प्रति है उसे प्राप्त कर उसकी रहस्यमयता को खोलना होगा और उसमें समाहित अमूल्य ज्ञान को सार्वजनिकों तक पहुँचाना होगा इस कार्य को किसी अर्हर संस्था को हाथ में लेना होगा ऐसा प्रो.अश्वत्थ नारायण जी ने कहा ।