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(सिरि भूवलय
अणुविज्ञान, परमाणुविज्ञान, रसपाद प्रक्रिया, प्राणवायुपूर्वा नाम का वेद्य विज्ञान, आदि समस्त शास्त्र इसमें है कहा गया है। यह ग्रंथ नवमांक पद्धति में रचा गया है। आज के दशमान्पद्धति में स्ष्ट करना संभव नहीं है क्योंकि दशमांश पाँच से अधिक को एक समझ कर, दशमांश पाँच से कम को शून्य समझ कर हम गणना करते हैं। परन्तु नौ अंकों के गणित में नवमांक पद्धति में कुछ भी छोडा नहीं जा सकता है और न ही जोडा जा सकता है इस प्रकार पूर्ण स्पष्टता प्राप्त होने के कारण यह ग्रंथ एक स्पष्ट गणित पद्धति में रचित कन्नड का ६४ ध्वन्याक्षर से मिला हुआ सर्वभाषामयी, सर्वशास्त्रमयी ग्रंथ है कवि के कहेनुसार
दरुशनशक्ति ज्ञानद शक्ति । चारित्रवेरसिद रनत्रयव ॥ बरेय बारद बरेदरु ओदबारद । सिरिय सिद्धत्व भूवलय ॥ यारेष्ट जपिसिदरष्टु सत्फलविव । सारतरात्मक ग्रंथ ॥ नूरु साविर लक्ष्य कोटिया श्लोकांक सारवागिसिद भूवलय ॥ यशस्वीदेविय मगळाद । ब्राह्मीगे असमान काटकद ॥ सिरिय नित्यवु अरवनाल्कक्षर । होसेद अंगैय भूवलय
करुणेयं बहिरंग साम्राज्य । लक्षमिय अरुहनु काटकद ॥ सिरिमाता यत्नद ओन्दरिं पेळिद । अरवनाल्कंक भूवलय ॥
सिरि भूवलय में कुल ७१८ भाषाएँ है जिसमें १८ मुख्य या बडी भाषा और ७०० अन्य भाषाएँ हैं ऐसी जानकारी दी गई है। केवल कन्नड भाषा में ही मात्र ६४ अक्षर हैं अन्य भाषाओं में उससे कम अक्षर होने के कारण केवल कन्नड बंध में श्रीकर्लमंगलं श्री कंठैय्या जी ने इसको लिखा । ग्रंथ के परिशोधक और संपादक रहे श्री कर्लमंगलं श्रीकंठैय्या जी का निधन ११ मार्च १९६५ को हुआ । उनके निधन के पश्चात इस ग्रंथ के विषय में जानकारी देने वाला कोई नहीं रह गया था । श्रीकंठैय्या जी के द्वारा लिखी गई सिरि भूवलय की जनता प्रकाशित संस्करण की हस्त प्रति उपलब्ध है । १९५३ में प्रकटित सिरि भूवलय के दो भागों की मुद्रित प्रति उपलब्ध है परन्तु इस मुद्रित प्रति को पढ कर समझ पाना अति कष्टकर है । उपलब्ध सामाग्री की सहायता से ग्रंथ की रचना रीति तथा व्याप्ति
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