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( सिरि भूवलय )
भूवलय की निखरता (स्पष्टता)
सिरि भूवलय के गणित क्रम में लगभग के बराबर कुछ भी नहीं है जो कुछ भी है वह स्पष्ट और पूर्ण है। यदि ऐसा नहीं होता तो सिरि भूवलय के गणितांक, उनके ध्वनिसंकेत विश्व के समस्त भाषा शब्द साहित्य के लिए पर्याप्त होना संभव नहीं होता । इस गणित क्रम में चिल्लर कुछ भी नहीं है ।
सिरि भूवलय के अनुसार सभी अंक शून्य से उत्पन्न होते हैं । इसमें दशवर्ग पद्धति ही नहीं है । इस पद्धति के अनुसार, आज की दशक पद्धति के अनुसार आज की पद्धति का नौ रूप, प्रमाण इस प्रकार होगा।
१०, १००, १०००, १०,००० = १ ९, ८१, ७२९, ६५६१, = ९
यह नवमांक पद्धति अनुसार, सभी समय काल के लिए ९ पूर्णांक प्रतिलोम गणित क्रमानुसार, यह-९, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २, १, ०, अनुलोम गणित क्रमानुसार यह ९, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २, १, ० । इनमें १ गणितांक न होकर केवल संख्या है । इस में वृद्धि नहीं होती है शेष बची आठ संख्याएँ ही गणितांक हैं। इन आठ संख्याओं का वर्ग ही ८*८=६४, सिरि भूवलय के मूल चक्रों में भी इतने ही अंक हैं । विश्व में कितने भी पृथक अंक हों, उनका प्रमाण चाहे एक हो, दो हो, बीस हो, या चाहे बीस हजार हो वे सभी इन नौ संख्याओं के स्पय रूप के विविध स्थान भेद ही हैं । इन स्थान भेदों को पहचान कर इन संख्याओं को मूल संख्याओं के स्थान के लिए अनुसरित कर एक राशी के बराबर बना कर, पहले आए हुए गणित निर्देशानुसार २ को ६४ गुणा करने पर जितना आए उसे स्थान भेदानुसार द्वराशी बना कर सभी संख्याओं के राशी निर्देश को बनाना चाहिए । १ से लेकर ९ तक सभी बीज संख्याओं के स्थान निर्देश बना कर गुण वृद्धि पद्धतिनुसार, २ से ९ तक व्यूह समुदाय की तालिका को रखना चाहिए। २का ६ व्यूह संख्या राशी ।
१/२=४, ४/२=६५, ५३६ २/२=१६; ५/२=४५९४९, ६७, २९६ ३/२=२५६ ६/२=१८४,४६,७४,४०,७३,७०,९५,५१,६१६
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