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सिरि भूवलय
ईधि व्याधिगळेल्ल संहारवागुव । अदिय चक्रबंधगळ साधिप जयसिद्धि भरत भारत युद्ध । दादिय काव्य भूवलय ॥७॥
___मू. भू, अ. १७ इस प्रकार कहते हुए मूल भूवलय का उपदेश ही युद्धावसर में प्रथम भूवलय है कहते हैं ।
आदि जिन के पहले ही केवली बने गोम्मट को जिनमतानुयायी प्रथम पूजित करते हैं यहाँ
यशद हिंसेय युद्धदोळगित्तनदु बंदु । हसनागि नेमिय तम्म ॥ श्वसनत्यागदि कुरुक्षेत्रदि कृष्णन । वशकीये भगवदगीता ॥
ऐसा कहते हैं । इसके आगे तीर्थंकर बने श्रीकृष्ण ने युद्ध विमुख हुए अर्जुन को बोध कराया ऐसा कहते हैं
ऐदिदवर कायददवर कोल्दव । सादिय भरतदनादि ॥ ओदिद उपनिषद्गीतेय कृष्णनु । सादिसु अर्जुन एनुत ॥ ईग आगलु बेग राग विरागद । श्री गुरु सारस्वतर ॥ बेगेय हरिसुव नवम बंधाक्षर । श्री गुरु कृष्ण भूवलय ॥ रूपिसि तंदित्तु कृष्ण तीर्थंकर । ना परंपरेयादिकाव्य । श्री पदपद्मवनंदु मेट्टिद कृष्ण । श्री पादगळ्गनागतद ॥ आगलु ओन्दन्ग द्वादशवादंते । ईगदु नाल्काद वेद ॥ सागिद गीतेय सर्वभाषांकवे । ईगिन सर्वधमांक ॥ आ अंद कटिद गांहीवविज्ञान । स अवागि बरूवंकतिद्धि ॥
नववागि सर्वभाषांकवेल्लव कृष्ण । नवमपार्थनिगित्तु ॐ न ॥ __इस प्रकार गोम्मट से आदिभूवलय युद्धांत में प्रकट हुआ यही परंपरागत रूप से स्वयं तक आया ऐसा कवि कहते हैं । इस प्रकार भूवलय प्रथम, मध्य युद्धसंदर्भ में प्रकटित होने वाला ज्ञान का भंडार है ।
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