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सिरि भूवलय
को संस्कृत भाषा में या प्राकृत भाषा में या किसी भी देश भाषा में मैंने नही देखा । यह एक अपूर्व और अद्भुत ग्रंथ है।
यह अंक कितने हैं? लिपियाँ कितनी हैं ? अनेक भिन्न भिन्न लिपियां थी। हेमचंद्र का कहना हैं कि ३२ तरह का लिपियां हैं । उनमें से गळीत' एक हैं । प्राकृत में गळीत का अर्थ है आज का गणित । ' नवांग' कहने वाला इस अंक गणित में एक पद्धति है । यह नौ संख्या को रखकर प्रयोग पद्धति है। नवो नवो भवती' यह श्लोक बार - बार प्रयोग होता है। इस नव' का अर्थ नया' और नौ' है । नवोभवती' में यह नौ संख्या नए रूप से मिला हुआ हैं । इसे, इस पद्धति को परिष्कृत रूप से, श्रेष्ठ रीति से, संपूर्ण ग्रंथ को इस शैली में, अंक पद्धति में रचना, यह एक अपूर्व साहस का कार्य है। यह बात सभी को अपनानी चाहिये ।
अब इस ग्रंथ के कर्त्ता कुमुदेंदु के विषय में इस समय प्राप्त जानकारियां कितनी सही हैं : मुझे थोडा अनुमान है। यह सांगत्य शैली भी किस काल की हैं यह हमें ज्ञात नहीं हैं । इसमें १४वीं सदी के बाद में प्रयोगित तथ्य आतें हैं । यह कैसे संभव होगा ? विमर्शकों और अभ्यासियों को विचार करना पडेगा । यह ग्रंथ शैली अंक पद्धति है तो, यह कौन सी अंक पद्धति है ? इसमें चक्रों को दिया गया हैं । चक्रबंधों में काव्य को लिखने का नियम प्राचीन काल से प्रचलित है । इसमे पद्म, हंस, इत्यादि चक्र ही होतें हैं । संस्कृत साहित्य में इस विन्यास में लिपियों को चक्राकार रीति में आयोजित किया जाता है । परंतु इसमें अंक है । कवि ने अंकों का ही प्रयोग कर चक्रों को बनाया है । अंकों को देकर पदबंध की रचना करना एक अद्भुत कार्य है । इसलिए यह ग्रंथ हमें आश्र्य चकित करने के साथ-साथ कुतूहल भी उत्पन्न करता है । इस स्वारस्य (गूढार्थ) क्या है ? कवि कहते हैं कि यह सर्वशास्त्रमयी, सर्वभाषामयी, सर्वधर्ममयी' है । इसमें ७१८ भाषायें समाहित हैं । उसमें से १८ भाषाओं को महाभाषा कहते और इनकी सूची भी दी गई है । इन १८ भाषाओं की सूची में से हमें निश्चित जानकारी केवल १० भाषाओं की है । शेष ८ भाषायें कौन सी है ? यह हमारे कल्पना से बाहर हैं । ७०० भाषाओं को क्षुल्लक भाषा' कहते है। इसका अर्थ मैनर (लघु) भाषायें हैं। इन सात सौ भाषाओं में पारसिक', जावनिक’, यवनिय' ( अन्य देश का ) ऐसे सुलझाया गया है । इसका विभाग कैसे
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