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( सिरि भूवलय)
शुभकामनाएं-अभिप्राय विद्यालंकार, शास्त्रचूडामणी, संगीतकलारत्न, वेदशास्त्रनिधि, विद्यावाचस्पति प्रो. एस. के. रामचंद्रराव जी का अध्यक्ष भाषण
(दिनांक ९-३-२००३ का सिरिभूवलय
के प्रथम संस्करण के विमोचन समारोह में) सिरि भूवलय से मेरा रिश्ता चालीस साल का है। मैं मिथिक सोसैटी जर्नल में संपादक था, श्री विद्यार्णव तंत्र के ऐकोनाग्रफी विभाग में काम कर रहा था उसी संदर्भ में यह सिरि भूवलय ग्रंथ मेरे पास आया था । मेरे गुरूजी डा. एस. श्रीकंठशास्त्रीजी के साथ इसके विषय में अनेक बार चर्चा की थी। इस ग्रंथ के लिए मेरे मित्र डा. टी. वी. वेंकटाचलशास्त्रीजी ने उत्तम प्रस्तावना लिखी है। अत्यंत प्रौढ, विद्वतपूर्ण इस प्रस्तावना से भी अधिक किसी को कुछ कहना असाध्य हैं ऐसा हमें लगता है।
परंतु यह ५९ अध्यायों से रचित अंक शैली ग्रंथ हैं । इसको सांगत्य शैली में परिवर्तन किया गया हैं । इस ग्रंथ का "अवलोकन करते समय इसके बारे में पुनः पुनः चर्चा करते समय मेरी समझ में आए कुछ समस्याओं और अभिप्रायों को आपके सामने रखू तो मेरा कार्य संपूर्ण हो गया ऐसा मुझे लगता
___ इन अंकों से ग्रंथ को, ग्रंथ के भाग को लिखने की पद्धति हमारे वेदों में अर्थातः ऋग्वेद में दिखाई देती है । वहां 'अस्यवानीय सूक्त' का क्रम है। इस अस्यवानीय सूक्त में अंकों को प्रयोग कर, अंकों के द्वारा अंकों से ही उच्चारित करते हुए देवताओं और देवता कर्मों को व्यक्त किया जा सकता है। अत्यधि द्धशांगुलम' त्रिपादृर्ध्व उदैत्पुरुषः' त्रिरग्निः' पंचदावरुणः' इस प्रकार देवताओं का उच्चरण करते समय अंकों से कहने का नियम, संप्रदाय वेद काल से ही चला आया है। किंतु इस सिरि भूवलय में कहेनुसार संपूर्ण ग्रंथ को, ग्रंथ भाग को ही अंकों से कहकर उसे ध्वनित करने की पद्धति, कब शुरु हुई ? कैसे शुरु हुई ? ऐसे एक ग्रंथ