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________________ ( सिरि भूवलय यशस्वतिदेविय मगळाद ब्राह्मीगे । असमान काटकद।। रिसिय नित्यवु अरवनाल्क्षर । होसेदु अंगैय भूवलय।। करुणेयिं बहिरंगसाम्राज्यलक्ष्मिय । अरुहन कर्माटकद सिरिमात यत्नदे ओंदरिं पेळिद । अरवलाल्कंक भूवलय ॥ जयख्यान भारत ; मूल भग्वद गीता आदिजिन ने इस सकल भाषामय धर्मचक्रोपदेश का वृषभ सेन नाम के गणधर को बोध कराया। इसी क्रम का सभी तीर्थंकरों ने पालन किया। अंत में नरोत्तम महावीर ने इसे अपने गणधर गौतम को बोध कराया और फिर गौतम ने इसे श्रेणिकराज को, ऐसा इस ग्रंथ में कहा गया है। इस बीच इस धर्मचक्रोपदेश की जानकारी रखने वाले २२वें तीर्थंकर नेमी अपने श्वसन त्याग के समय श्री कृष्ण को दिया, इस सर्व भाषामयी धर्मचक्रोपदेश को श्री कृष्ण ने महाभारत के युध्द के समय में विमुख हुए अर्जुन को उपदेशित किया इसे कृष्ण के गणधर सदृश व्यास श्री ने अपने “जय” अथवा “जयभारत" के १०,३६८ श्लोको में समाहित किया, यहाँ कृष्णोपदेश गीता ही १६२ श्लोक है कहा गया है । कृष्ण तीर्थंकर से प्रारंभ होकर यह धर्मचक्रोपदेश को ही स्वयं अपने शिष्य गंगराज, नवकाम, शिवमारन, राष्ट्रकूट अमोघ(दंतिदुर्ग), को भी उपदेशित किया (इसी लेख में सिरि भूवलय की कोरी कागज़ (हाथ से बना हुआ कागज़) का प्रथम पृष्ठ का सांचामुद्रित हुआ है)। सिरि भूवलय ६०,०००प्रश्नों का उत्तर बन, ६,००० सूत्र प्रमाण से, ६,००,००० श्लोक प्रमाण से प्रथम संयोग का २के वर्ग का ६४ के गणित का २० पृथक अंकों में आता है यहीं जानकारी देते हैं (अ.७.१२२४) भाषा छंद सिरि भूवलय किसी भी एक भाषा का ग्रंथ नहीं है। यह जिनमत के शास्त्रों की जानकारी अनुसार सर्वभाषामयी भाषा साहित्य है। इसका एक और नाम “परमागम"। छंदों के अनुसार सिरि भूवलय का कन्नड रूप पुरातन कन्नड शासन में रहे अनुसार शब्द गण में आते हैं। सांगत्य में हैं। कन्नड ही प्राकृत, शूरसेनी, -383 383
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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