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________________ सिरि भूवलय श्रेणी गति और नवमांक गति के द्वारा पढ़ कर एक रीति से इस ग्रंथ को कन्नड भाषा रूप में तैयार किया गया है । सिरि भूवलय “बरेयबारद, बरेदरु ओदबारद" ( लिखा न जाने वाला, तो पढा न जाने वाला) पुस्तक है ऐसा कवि दरुशन शक्ति ज्ञानद शक्ति चारित्र । वेरेसिद रत्न त्रयद ॥ बरेय बारद बरेयदरु ओदबारद । सिरिय सिद्धत्व भूवलय ॥ यारेष्टु जपिसिदरेष्टु सत्वलवनीव । सारतरात्मकग्रंथ ॥ नूरू साविर लक्ष्य कोटिय श्लोकांक । सारवागिसिद भूवलय ।। लिखा गया अर्थात जितना जप करे, मनन करे, उतना फल प्राप्त होगा यह १००,००० ०००,०००,०००,०००,००० (सौ, हजार, लाख, करोड ) श्लोकों के अर्थ के बराबर है, कहते हैं । ग्रंथ परंपरा जैनमतानुसार प्रथम तीर्थंकर, वैष्णव मतानुसार नारायण का आठवाँ अवतार स्वरूप वृषभ, वैराग्य धारण कर तपस्या में जाने से पूर्व अपने समस्त राज्य को अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को और पौदनापुर नाम के छोटे राज्य को अपने दूसरे पुत्र गोम्मट को प्रदान करते हैं । अपनी पुत्रियों ब्राह्मी और सौन्दरी को अक्षर अंक का ज्ञान देकर, यह अंकाक्षर विज्ञान ही प्रत्येक समय, प्रत्येक विषयों तथा भाषाओं का समिष्ट ज्ञान है कहकर परिचय करवाते हैं । ब्राह्मी सौन्दरी को वृषभ के कहे ६४ अक्षर और सौन्दरी को कहे शून्य के साथ ९ संख्याएँ, इनके गणित सम्मिलन से संसार के समस्त काल के सर्व साहित्य प्रकट होने के विवरण को गोम्मट देव ने उनसे ही जाना । यही आदि धर्म चक्र है। इस धर्म चक्र के अक्षर ५,१०,३०,००० हैं, इसके क्रमगति गणना से भूत वर्तमान भविष्यत काल, समस्त भाषा साहित्य प्रकट होगा ऐसा कवि विवरित करते हैं इस चक्र के आदि निर्माता कन्नड ऋषि आदिजिन हैं । उन्होनें कन्नड की सिरि भाषा में निर्माण किया है। इस विषय को कुमुदेन्दु इस प्रकार कहते हैं 382
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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