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________________ सिरि भूवलय ही उसकी उपयोगिता या अनुपयोगिता का निर्धारण किया जा सकता है। कुछ भी हो सिरि भूवलय कन्नड भाषा का एक अमूल्य रत्न है कथन का कोई अनादर नहीं कर सकता । “सिरि भूवलय में केवल रचनावैचित्य है और कुछ भी नहीं है” ऐसा महनीय जन उद्गार दे सकते हैं। ठीक है, खुशी की बात है ! पर क्या यही एक इसकी श्रेष्ठता का साक्षी नहीं है ? सभी कुछ उसमें समाहित है ऐसा कोई कह नहीं सकता। हमारे अभिप्रायानुसार भारतीय प्राचीन साहित्य का बह्वंश समाहित है । भारत एक समय में अत्युच्छ्राय (अति उच्च) स्थित पर अनेक अमूल्य ज्ञान साहित्य से संपन था । आज प्राचीन समय के कई साहित्य ग्रंथ उपलब्ध ही नहीं है सभी लुप्तप्राय हो गए हैं। इस प्रकार लुप्त ग्रंथों में कुछ ग्रंथ तो सिरिभूवल्य में समाहित हैं यदि ऐसे ग्रंथ सिरि भूवलय के फलस्वरूप प्रकाश में आए तो किसे नहीं चाहिए?, यही हमारे तर्क का आधार है। सिरि भूवलय ग्रंथ को कष्ट होने पर भी कम-से- -कम एक बार ही सही जड सहित अध्ययन कर अपना निर्णय दें ऐसा हम विद्वानों से आग्रह करते हैं। ऐसा न हो - बोद्धारो मत्सरग्रस्ताः प्रभवः स्मयदूषिताः अबोदोपहताश्चान्ये जीर्णमंगे सुभाषितं ऐसी भृतहरी की व्यंग्योक्ति सिरि भूवलय के विषय में चरितार्थ न हो ऐसी हम आशा करते हैं। ८. राष्ट्र मत १८-११-१९५५ सिरि भूवलय – कुमुदेन्दु मुनि विरचित - शीर्षक के अंतर्गत लेख में सिरि भूवलय के ग्रंथ कर्त्ता कुमुदेन्दु मुनि वेद शास्त्र पुराणों के सारांश को इस ग्रंथ में ताना-बाना के समान बुनकर उस के मध्य में अति सूक्ष्म रूप से संजीविनि विद्या, स्वर्ण विद्या रहस्यों को बांधा है। इस कारण इस ग्रंथ का महत्व अद्वितीय है । इन सभी को सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो पाश्चात्य देशों में विरचित 376
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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