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( सिरि भूवलय
७. सत्य २७-८-१९५३
जगत की अद्भुत कृति सिरिभूवलय ऋगवेद
ऋगवेद की प्राचीनता में कोई संदेह नहीं है । यह मानव के उत्कर्ष का प्रथम सोपान है तथा अत्यंत प्राचीन साहित्य है और चार वेदों में प्रथम वेद
अत्यंत प्राचीन वेदो का अनेक ऋषियों ने संपादित (प्राप्त) किया है ऐसा कहा जाता है उनमें शाकल, बाषक्ल, तथा कात्यायन प्रमुख है। वर्तमान में शाकल ऋषि के द्वारा प्राप्त वेद प्रचलन में है। परन्तु शेष ऋषियों द्वारा संपादित वेदों के विषय में हमें कुछ अनिर्दिश्ट चिन्ह ही ज्ञात है, कोई स्पषट आधार प्राप्त नहीं है । शाकल ऋषि के निरुत्तपंथी, ऐतिहासिक पंथी के विषय में कोई विस्तृत इतिहास प्राप्त नहीं है ।
__शाकल ऋषि के द्वारा संपादित ऋगवेद “अग्निमीळे” मंत्र से प्रारंभ होता है । सिरि भूवलय में मूल ऋगवेद को ही लिया गया है ऐसा कवि जानकारी देते हैं। इस के अनुसार ऋगवेद “ॐतत्सवितुःवरेण्यं" गायत्री मंत्र से प्रारंभ होता है, कहा गया है । और अधिक मंत्र अथवा इससे संबंधित विषय अभी तक ज्ञात न होने के कारण उनके ज्ञात होने तक हमें इंतजार करना होगा । ऋग वेद का प्रथम मंत्र “अग्निमीळे” नहीं वरन “ॐतत्सवितुः वरेण्यं" है कहने मात्र से कोई प्रमाद (दोष) उत्पन्न नहीं होता है । परन्तु जैनों को नास्तिक कहकर वैदिकों के संबोधित करने पर भी, वेद ही सिरिभूवलय का वृहद रूप हैं । वेद माता स्वरूप है, उसे मैं यहाँ उद्धृत करता हूं, ऐसा कहने वाले जैनाचार्य का कथन, अब ही सही हम वेद पंथी नहीं है, कहने वाले कुछ जैनों और जैनों को नास्तिक कह कर निंदा करने वाले वैदिकों की आँखें खोलने में सहायक होगा।
पूर्ण रूप से सिरिभूवलय को समझ न पाने का कारण हमारी ही समझ का स्तर कुछ कम होगा ऐसा मानना उचित होगा । इसमे कोई अर्थ नहीं है ऐसा कहकर निंदा करने में कोई अर्थ नहीं है। वस्तु का ज्ञान प्राप्त होने पर
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