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________________ -(सिरि भूवलय ॥८६॥ ॥८९॥ ।।९२॥ ॥९४॥ ॥९५॥ ||९६॥ 1९७॥ १९८॥ ।।९९।। ||२००॥ ९ x ६ x ५४ ईगद सम्ख्यातदन्क ॥८४॥ तागलसम्ख्यातदन्क ॥८५॥ वेगद सम्ख्यातदनक रागद मध्यमानन्त ।।८७॥ तागलु उत्कृष्टानन्त ॥८८॥ आगुवनन्तानन्तान्क श्री गुरु मध्यमानन्त ॥९०॥ ओम् गुरु उत्कृष्टानन्त ॥९१|| आगर रत्नत्रयान्क चागर शाश्वतानन्त ॥९३॥ जागरविरुव भूवलय गमनिसे “अथवा प्राक्त सम्स्कू त" । विमल मागध पिशाच' म्*भा ॥ सम ‘भाषाश्च शूरसेनी च'द । क् रमदे' षष्टोत्र' दभूरि दरुशिसे 'भेदो देशविशेष् आ द । वर' विशेषादपभ्रम्शह' ॥ परम पद्धतियिन्तिवरनु मूररिम् । परि गुणिसलु हदिनेन्टु । मळिसलथवा ‘कर्णाट मागध' वरे । बरलु' मालव लाट गौड' || व रि* यिरि 'गुर्जर प्रत्येक त्रयमित्य' । वरद ष्टादश महा भाषा' मरळि मरळी बेरे विधदिनद पेळव । गुरुवर सनघ भेदगळ ॥ वर काव्य सरणिय शयलियनतिरलीग । सरस सवनदरियरिदनक णवमानक गणनेयोळ् भुवलय सिद्धान्त । अवरनुलोमव र्*न्क ॥ नवमवु प्रतिलोमवागिसि बन्दन्क । सविय भूवलय सिद्धान्त साविरदेन्टु भाषेगळिरलवनेल्ल । पावन महावीर वाणि || काव धर्माव्कवु ओम्बत्तागिर्पाग । तावु एळनूर हदिनेन्टु ६ ४३ = १८, १८ x ३ = ५४ ॥१०१।। कावुदु हम्सद लिपियम् ॥१०१॥ नावरियद भूत लिपियु शरी वीर यक्षिय लिपियु ॥१०३॥ ठाविन राक्षसि लिपियु ॥१०४॥ तावल्लि ऊहिया लिपियु कावे यवनानिय लिपियु ॥१०६॥ कावद तुर्कीय लिपियु ॥१०७॥ पावक दरमिळर लिपिय पावेय सइन्धव लिपियु ।।१०९।। ताव मालवणीय लिपियु ॥११०॥ शरी विध कीरिय लिपिय पावन नाडिन लिपियु ॥११२॥ देव नागरियाद लिपियु ॥११३।। वविध्य लाडद लिपियु काविन पारशि लिपियु ॥११५॥ काव आमित्रिक लिपियु ॥११६।। भूवलयद चाणक्य देवि ब्राहियु मूलदेवि ॥११८॥ श्री वीरवाणि भूवलय ॥११९।। देवि सन्दरिय भूवलय पुट्टभाषेगळेळु नूरन्क मातिन । गट्टिय लिपिगळिल्दन् क* ॥ हुट्टदनक्मर भाषेय नरियुव । हुट्टलिल्द लिपियन्क वर 'सर्वभाषामई भाषा' एन्नुव। अरहन्त भाषितव् वाक्यम् ॥ वर' विश्व विद्यावभासिने' (एन्नुव) एन्देम्ब। परिपरि परिभाषेय अन्क वासवरेललराडुव दिव्य भाषेय । राशिय गणितदे कट्टि ॥ आशा ध* र् मात कुम्भदोळडगिह । श्रीशनेळ् नूरन्क भाषे इदरोळु हुदुगिह हदिनेन्टु भाषेय । पदगळ गुणिसुत बरुव * ॥ सदनव तोरेदु तोरेदु तपोवनवनु सेरे । हदयके शान्ति ईवन्क रिषिगळेल्लरु कूडि महिमेय लिपिगळ । वशगोन्डु भाषेय सर म* ॥ हसगोळिसुत हिन्दण ईगण हिन्दण मुन्दे । वशवप्प मातुगळन्क ॥१०२॥ ॥१०५॥ ||१०८॥ ॥१११॥ ॥११४॥ ॥११७॥ ॥१२०॥ ॥१२१॥ ॥१२२॥ ॥१२३॥ ॥१२४॥ ॥१२५॥ 282
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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