________________
(सिरि भूवलय)
॥७७॥
॥७८
॥७९॥
||८०॥
।।८।। ।।८२। ||८३॥
अरुहनवाणि ओम्बत्
।।७४॥ परिपूरण नवदन्क कुम्भ करग ॥७५।।
सिरिसिद्धम् नमह ओम्हत्तु ॥७६॥ गणित राशियोळुत्पन्नवागिह।। बगेबगेयन्कदमरद । सोगसिनिम् मन्गलप्राका भद्रवु। बगेगेशुभदसउख् यकरवु धिषणर् एन्देने वृद्धमुनिगळ सम्पद । दिशेयोळु बह बालमुनिगे ।। वशवागद राशियतिशय हारदे । होसेदरे बन्दिह शिववु मनवुसिम्हासन तनवु चय्त्यालय। जिनबिम् बदन्ते नन् आत्म।।नेनुत अक्षय* वाद भावद्व्य गळिन्द घन्बन्द पुण्य भूवलय मरेतिह देहाभिमानदोळध्यात्म । सरमालेयोळु बन्धकरगे ॥ अरहन्त रूपिन* द्रव्यागमकाव्य । सिरियिर्प सिद्ध भूवलय मनदर्थियिन्द शरीरव तपिसिद । जिनरूपिनाशेय जनरु । घनकर्नाटकवेन्टनु गेलेमो म । दनुभव मन्गल काव्य दिशेयोलोम्बत्तर वशगोन्ड सूत्रान्क दसमान पाहुड काव्य ।। वशवाद नम्* मात्म स्वसमयवेन्नुव। कुसुमयनाशक काव्य सर्वार्थसिद्धिसम्पदद निर्मलकाव्य । धर्मवलौकिक गणित ॥ निर्मम बुद्धियन वलम्बिसिरुवर । धर्मानुयोगद वस्तु
शर्मर निर्मल काव्य ॥८४॥ धर्म मूरारु मूरन्क धर्म समनवय काव्य
॥८६॥ निरममकार वक्यानक धर्म भाषेगळेन्टोन्द्ऐळु
मर्म पश्चादानुपूर्वि धर्मसमन्वय गणित
।।९।। कर्मद अरिकेय गणित कर्मद सम्ख्यात गणित
कर्मद असम्ख्यात गुणित कर्मदनन्तान्क गुणित
कर्मदुत्क् रुष्टदनन्त कर्मसिद्धान्तद गणित
॥९६॥ निर्मलदध्यात्म बन्धम् सर्वस्व सार भूवलय
।।९८॥ धर्ममन्गल प्रातवु
निर्मल शुद्ध कल्याणम् ||१००।। धर्मवय्भव भद्रसौख्य नवकार मन्त्रदोळादिय सिद्धान्त् । अवयव पूर्वेय ग्रन्थ। दवतारद् आदि म द्अक् षरमन्गल। नव अ अ अ अ अ अ अ अ अ अवरोळु अपुनरुक् तान्क
अवु नोडलपुनरुक्त लिपि अवरोळगादियभन्ग
॥१०५|| सविएरळ मूनाल्कु भन्ग इवु ऐदारिळेन्टु भन्ग
।।१०७॥ सवोम्बत्तु हत्हन्ओम्दु
||८८॥
॥८५॥ ।।८७॥ ॥८९॥ ॥९ ॥
।।९२।।
॥९३||
||९४||
॥९५॥ ।।९७॥
॥९९|| ||१०||
॥१०२।।
।।१०३||
॥१०४॥ ॥१०६।। ॥१०८॥
181