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=(सिरि भूवलय -
सम्यक चरित्र से आत्मा को संसार से दूर कर अर्हन्त सिध्द के मन में आने वाला स्वयं सिध्द की पदवी को प्राप्त होता है।
इस भूवलय को कहने वाला “अर्हन्त” है। यह अध्यात्म भूवलय, शेष को समाप्त करने वाला काव्य सिध्द संपद काव्य, जिनभक्तों के द्वारा भजन करने वाला निर्मल काव्य, अष्ट कर्मों को निर्मूल करने वाला वैभव काव्य है, इळे (धरती) की रक्षा करने वाला, अभिवृधिद होने वाला तहों को खोलने के सादृश्य, छिले हुए केले सा मुलायम, स्पष्ट सरलांकों द्वारा बना हुआ, कोयल की ध्वनि जैसा, कन्या की आवाज़ के समान धरती के अंधकार को दूर करने वाला, अर्हन्त के सामीप्य को दिलाने वाला, व्रत वाला दिगंबर काव्य है।
'कर्माटक का कथन' अर्थात कन्नड भाषा में रचित ३६३ धर्मों को महत्त्व देने वाला काव्य है। यह काव्य एक व्यक्ति की अज्ञानता को दूर करता हुआ, उसे अध्यात्म की ओर, विनय से, स्थिर रूप से, खींचने वाला काव्य है। ७२९० घन अंक १५०६६ आनंद, १८७००न दिखने वाले ४४ अंक इस प्रकार तीन प्रकार के काव्यों से बना हुआ यह 'अक्षर' काव्य ही आदि जिनेन्द्र का भूवलय है।
चुतर्थ “इ” अध्याय
इस अध्याय में काव्य बंध, गुरु परंपरा, रस, स्वर्ण आदि लौह को शुध्दिकरण के विषय में विवरण दिया गया है। यह यशस्वी देवी के साथी वृषभ देव का काव्य है अशरीर सिध्दत्व के उत्पन्न होने का काव्य है । यह नवमांक बंधन में है। इसमें चक्र बंध, हंस बंध शुध्दाक्षर का अंक रक्षा का आवरण है। सरस शलाका की श्रेणी अंक, क्रोंच, मयूर कामन, पदपद्म, नख, चक्र, कामन गणित, सरमग्गी कोष्ठक(गुणन सूची, पहाडा) वाला अध्यात्म बंध नवपद्म बंध आदि का उल्लेख है।
____ यह तन को आकाश तक पहुँचा कर स्थिर करने वाला घन वैमानिक काव्य है। पनस पुष्प का काव्य, विश्वम्भर काव्य, जिनरूप का भद्र काव्य, आदि अंत को मिटा कर भव्य जीवों को जिन रूप में पहुँचाने वाला काव्य रणकहळेय कूगन्नु इल्लवागिप काव्य (युध्द की आवाज़ को मिटाने वाला काव्य) कहकर काव्य प्रयोजनों में कहा गया है। इस संदर्भ में आने वाले रथ को खींचने वाले मार्ग में आने वाले
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