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(सिरि भूवलयः
को समझने के लिए बहु काल तक संयुक्त रूप से प्रयत्न किया। अंकों के राशि में समाहित सिध्दांत साहित्य सरस्वती का साक्षात्कार होने में वह प्रयत्न सफ़ल नहीं हुआ। इतने मेम काराणांत से कर्ल मंगलम श्री कंठैय्या जी अपने ग्राम वापस चले गए। येलप्पा शास्त्री जी ने अपने प्रयत्नों को आगे बढाया और उसमें वे बहुत कुछ यशस्वी भी हुए। उस यस्श्स्व के विषय में श्री कंठैय्या जी कहते हैं हमारी जानकारी के अनुसार संसार में इस तरह का अंकों का ग्रंथ केवल यही है। इसको कन्नड का, कन्नडिगाओं का एक विशाल संपत्ति मानना गलत नहीं होगा। इससे पहले ही संपादकत्व में ग्रंथ बाहर प्रकट होने में ही वस्तु विमर्श कर विस्तार पूर्वक एक प्रस्तावना लिखने का विचार शास्त्री जी कर चुके थे ऐसा लगता है। इन दोनों का स्नेह, साधना और सहयोग अनुकरणीय है।
अब सिरि भूवलय के समग्र रूप से प्रकटण की सभी तैयारियां हो रही है। ग्रंथ के५६ अध्यायों में से केवल ३३ अध्याय १९५३ में (शक १८५३, ज्येष्ठ बहुल पंचमी; ईसा बाद ५-३-१९५३) प्रकटित हुए। उस समय बंगलोर के सर्वार्थ सिध्दि संघ ने प्रकटित किया। अभी पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी के सुपुत्र एम. वाय. धर्मपाल जी बंगलोर के पुस्तक शक्ति के प्रकाशक के वाय. के. मोहन जी ने सभी सहयोग उदारता पूर्वक देकर इस अपूर्व ग्रंथ को सभी आसक्त, संशोधक, जनकल्याण के हितासक्त और शास्त्रार्थ प्रियों के ध्यान में लाए हैं। इन दोनों का स्नेह, सहयोग, और साधाना अनुकरणीय है। बहुत समय से धर्मपाल जी हस्त प्रति को संरक्षित कर समग्र ग्रंथ के प्रकट होने के शुभोदय दिन का इंतजार कर रहे थे। उनके सहयोग के सिरि भूवलय फ़ॉउंडेशन (रि) संस्था के सभी सदस्य सम्माननीय है। वैसे ही जटिल और कठिन इस शास्त्र ग्रंथ के प्रकाशन के लिए देश के सभी विशेष प्रकाशक संघ संस्था के प्रकाशक हिचकिचाते समय ब्रह्मास्त्र के सामने सीना ताने खडे हो और इस पुसत्क के प्रकटनण के लिए धैर्य और साहस के साथ प्रयत्न करते हुए श्री वाय. के. मोहन, श्री प्रभाकर चेंडूर जी, श्रीमती वंदना राम मोहन और उनके सहयोगी बंधु मित्र भी समाननीय हैं। इस सभी महानुभावों को उनके ग्रंथ संपादन के लिए और हम तीन विद्वानों के लिए अवसर लभ्य कराने के लिए मेरी और उनकी तरफ़ से कृतज्ञता अर्पित करता
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