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(सिरि भूवलय)
पावगं पोगळरिदु जिनपूजिय ना ना विधिद दानदमुळिन भावदोळा मल्लिकब्बेयं पोल्वववरार।। विनयदे शीलदोळ गुणदोळादिय पेम्पि(ने) पुट्टिदा मनो जन रति रूपिनोळ क्जणीयेनिसिर्द मनोहर वप्पु दोन्दु रू पिन मने दानसागरमेनिप्प संद से नन सति मल्लिकब्बेगे धरित्रयोळार दोरे सद्गुणंगळोळ।। श्री पंचमी यं नोन्तु द्यापनेयं माडी बरेसि सिध्दांत मना रूपवति सेनवधु जित कोपश्री माघनंदी यतिपतिगित्तळ।।
ये पद्य प्राचीन कन्नड के होने के कारण स्वभाविक रूप से रन्न कवि अपने अजित पुराण में (सन् ९९३) प्रशंसित दान चिंता मणि अत्ती मब्बे की याद को ताजा करता है लेकिन कोई शाब्दिक साम्य नहीं दिखाई पडता है ।
जैसे कन्नड वड्डाराधने के विषय में घटित हुआ वैसे ही कन्नड सिरिभूवलय के विषय में भी ग्रंथ का समय काल, कर्ता के नाम की समस्या, ग्रंथ नाम के सादृश्य के कारण से ( भूत बलि का महाबंध/भूवलय कुमुदेन्दु कन्नड रूप भूवलय) हुआ होगा। ... इस विलक्षण ग्रंथ में मूल विज्ञान विषय, दर्शन का तात्विक विचार, वैद्य, अणु विज्ञान, खगोल विज्ञान , गणित शास्त्र, इतिहास और संस्कृति विवरण, वेद, भगवद गीता का अवतरण सभी समाहित है। ऐसा ग्रंथ संपादक और विमर्शक विद्वान कहते हैं। इस कारण संशोधको के विचारानुसार, इन सभी को उभारने के लिए, आधुनिक शोध से तुलना करने के लिए और प्रायोगिक परीक्षा द्वारा तथ्यों को पहचानने का प्रयत्न अभी आगे और तीव्र गति से होना बाकि है। यह प्रयत्न व्यक्तिक रूप से चलने के बजाए संस्स्थ के द्वारा चले तो इनमें विविध क्षेत्रों से और भाषा विद हाथ मिलाएँ तो अधिक लाभदायक होगा।
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