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सिरि भूवलय
इसका वैशिष्टय और वैलक्षण है। संस्कृत - प्राकृत और कन्नड भाषा के लिये समान रूप से (अन्वय) संबंधित संप्रदाय रूप प्राप्त ६४ मूल वर्गों को १ से ६४ तक के अंक(संख्या) प्रतिनिधित्व करते हैं। उन प्रत्येक अक्षरों के लिए उपयुक्त अंकों को चौकोर खानों में ( २७ गुणा २७ = ७२९) भरे गए अंक राशी के चक्र ही इसके पृष्ठ हैं। ऐसे अंक राशी के पृष्ठ अभी १२७० संरक्षित है । कवि ही इसे अंक काव्य कहकर संबोधित करते है ( विमलांक काव्य भूवलय ८-९६)। इन्हें ही चक्र बंध काव्य, अंकाक्षर काव्य, अंक लिपि काव्य आदि नामों से पुकारा जा सकता है। निशब्द काव्य इस काव्य के लिए उचित संबोधन जान पडता है। कुमुदेन्दु की स्व हस्ताक्षर प्रति उपलब्ध नहीं है। सेन नामक दंड नायक की पत्नी मल्लिकब्बे ने इसकी प्रति बनवा कर माघ नंदी आचार्य को शास्त्र दान किया था। ऐसा ग्रंथ परि शोधक और संपादक की जानकारी होते हुए भी एस. श्री कंठ शास्त्री जी के मतानुसार उदयादित्य नाम के एक व्यक्ति ने, अपने राजा शांति सेन की पत्नी मल्लिकब्बे देवी के लिए, भूत बलि का महा बंध की प्रतिलिपि बनवाई और श्रुत पंचमी के उद्यापन में गुणभद्र सूरीय के शिष्य माघ नंदी को दान में दिया गया, ऐसी जानकारी प्राप्त होने के अलावा, कुमदेन्दु के भूवलय को मल्लिकब्बे ने प्रति बनवाई वही प्रति अभी कागज़ की प्रति है, ऐसा मानने के लिए आधार नहीं है।
ग्रंथ के प्रशस्ति में इस मल्लिकब्बे का वर्णन इस प्रकार है
महानीय गुण निधानं
सहजोन्नतबुध्दि विनयनिधियेने नेगळ्दं महविनुत कीर्ति कांतेय
महिमानं मानिताभिमानं सेनं ॥
अनुपम गुणगणदा स्व
मार्न शीलनिदानेयेनिसि जिनपदसतको
कनदशिलीमुखळेने मा
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ननिधि श्री मल्लिकब्बे ललनारत्नं ॥
आ वनितारत्नद पें
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