________________
(सिरि भूवलय
परिष्करण के लिए लिखे प्राक्कथन में दिए गए कथन में इस कुमुदेन्दु का विचार इस प्रकार ज्ञात होता है।
इस यति का नाम ; कुमुद चंद्र (१३) कुमुदेन्दु (२२) कौमदेन्दु मुनीश्वर (३२) कुमदेन्दु सूरी (३४) कुमुदेन्दु देव (४५) कुमदेन्दु पंडित मुनि (९६) __इस यति के व्यक्तित्व विवरण ; ये वासु पूज्य त्रैविद्य विद्याधरण उदयचंद्र यति के शिष्य (आरंभ गद्य); सिध्दांत शास्त्र विहितांतः करण दिव्यवाणी (पृ३४) यलवभू कुमदेन्दो राजवत राज तेजं (पृ ४४) श्री मान भूपाल मौली सुच्छरित मणि गण ज्योतिरू दोद्यातितांघ्र (पृ ४६) देशी गण- नंदी संघ- कुंद कुदान्वय- वक्रगच्छद यति (पृ ९६) __इस विवरण से इस यति के शामिल पंगड, विद्वत, वास स्थान और राज मान्यता आदि कुछ तो ज्ञात होता है। इतना ही नहीं सिरि भूवलय कर्तुव्य बहुशः इंगित होने के समान भूवलय शब्द अनेक बार (पृ. १३, ३८, ४५, ४६, ९२) उल्लेखित हुआ है ।
पदार्थ सार के अंत के तीसवें अधिकार के अंत में आने वाले आदि गद्य, वृत, २९ श्लोकों और कंद पद्य में स्तुतित कुमदेन्दु के गुरु परंपरा के निकट हुए वासु पूज्य त्रैविद्य देव, उदय चंद्र, (सिध्दांत देव) यही कुमुदेन्दु शतक के आदि गद्य में भी कुमदेन्दु के गुरु परंपरा में भी कहे गए हैं। इतना ही नहीं स्तुतित “सम्यकत्ववज्र धातेन। मिथ्या ताब्दी प्रभेदिन....” श्लोक में (पृ.२१) अल्प पाठ भेद सहित शतक में भी (पृ.२२) आवृति हुई है इसे ध्यान दें तो एक ही यति की स्तुति दोनों अक्षरों में हुई है कहना होगा । लेकिन इस यति का गण गच्छ अलग-अलग क्यों उल्लेखित हुआ है ज्ञात नहीं होता है । स्तुति में उसमें भी मूल संघ-बलात्कार गण, नाम से , शतक में देशी-गण, नंदिसंघ, कुंदकुदान्वय, वक्रे गच्छ नाम से है । गण-गच्छ विवरण में इस प्रकार की विधि निषेध नहीं है। कहा जाए तो विनिमय में शक्य कहें तो (A.N. UPADHYE: UPAADHYE PAPERS १९८३,ठ १९२,१९३) शायद समाधान मिलें ।
माघ नंदी के पदार्थ सार के कुमुदेन्दु स्तुति को देखा जाए तो इस पमय के शतक कर्ता देवप्पा ने इसी सरणी को थोडा बहुत अनुसरण कर अभी
-108
108