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(सिरि भूवलय
इन विचारों की कुछ सीमाएँ हैं । इसी कारण इन विचारों को नकेल डाल कर सिरि भूवलय के शास्त्रीय शोध को, उसके जन्मजात के लिखावट को कर्नाटक के गिनती के विद्ववमणियों में से के प्रकांड पंडित डॉ. टी. वी. वेंकटाचल शास्त्री जी के सम्मुख रख अभी के लिए सिरि भूवलय के कवि कुमुदेन्दु के कन्नड अभिमान के विषय में एक-दो विचार प्रकट करने के लिए चेतन सह्रदयों से आज्ञा चाहता हूँ।
वास्तव में अक्षर लिपि और संख्या लिपियों में रूप वैषम्य है परन्तु स्वरूप वैषम्य नहीं । स्वरूप में अर्थात काव्य शिल्प संदर्भ में परस्पर साम्य सौन्दर्य है। समान मूल्यों से भरित भी है। इन संकेत रूपों की अभिन्नता अपने काव्य के संदर्भ का कथानक में कवि कुमुदेन्दु अत्यंत मनोज्ञान रूप से चित्रित करते हैं। ___आदि तीर्थंकर होने वाले पुरुदेव तीसरे परिनिष्क्रमण कल्याण के बाद वैराग्य परावश होकर समस्त साम्राज्य को अपने सभी पुत्रों को बाँट देते हैं । मुख्य रूप से भरत को षट्खंड मंडल बाहुबली स्वामी को पौदन पुरादी भाग प्राप्त होता है। उस समय आदि देव की दो पुत्रियाँ कुछ शाश्वत संपत्ति देने का आग्रह पिता से करती हैं। तब आदि नाथ वृषभ स्वामी ज्येष्ठ पुत्री ब्राह्मी को अपनी बाँयीं तथा छोटी पुत्री सौन्दरी को अपनी दायीं गोदी में बिठा कर ब्राह्मी के बाएँ हाथ पर अपने दाएँ हाथ के अंगूठे से ॐ लिखते हैं । उसमें से ६४ अक्षरों के वर्णमाला का सृजन कर यह तुम्हारे नाम में अक्षर हो कह समस्त भाषाओं के लिए इतने ही अक्षर पर्याप्त हो कहकर आसीर्वाद देते हैं । ब्राह्मी से अक्षर लिपि को ब्राह्मी लिपि नाम पडा। उनके द्वारा ब्राह्मी को साहित्य शारदे नाम की शाश्वत संपत्ति प्राप्त
वृषभ स्वामी ने अपने दाहिने गोदी पर बैठी सौन्दरी के दाहिने हथेली पर अपने बाँयें हाथ के अंगूठे से उसकी हथेली के मध्य भाग में शून्य लिख कर इस शून्य को मध्य में काटे तो ऊपर का भाग (टोपी के आकार का) दो भागों को अर्थ पूर्ण ढंग से मिलाते जाए तो
OV30X2060 इस तरह शून्य से ही विश्व की सृष्टि हुई है, गणित में भी १० अंकों की
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