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________________ 10 1/4 Alhana Sāhu, a Minister of king ANANGAPĀLA-TOMARA of Dhilli is very much impressed with the the poet after listening his Candappaha-Cariu, the first Epic composed by him at Harayaņā. जहिँ असिवर तोडिय रिउ कवालु णरणाहु पसिद्ध अणंगवालु ।। णिरुदल वट्टिय हम्मीर-वीरु वंदियणविंद पविइण्णचीरु।। दुज्जण-हिययावणि-दलण-सीरु दुण्णय-णीरय-णिरसण-समीरु।। बलभर कंपाविय णायराउ माणिणियण-मण-संजणिय राउ।। तहिँ कुलगयणंगणे सिय-पयंगु समत्त-विहूसणभूसियंगु।। गुरुभत्ति-णविय तेल्लोक्कणाहु दिट्ठउ अल्हणु णामेणु साहु।। तेण विणिज्जिय चंदप्पहासु णिसुणेवि चरिउ-चंदप्पहासु ।। जंपिउ सिरिहरु ते धण्णवंत कुल-बुद्धि-विहव-माणं-सिरिवंत।। अणवरउ भमइ जगे जाहँ कित्ति धवलंती गिरि-सायर धरित्ति।। सा पुणु हवेइ सुकइत्तणेण चाएण सुएण सुकित्तणेण।। घत्ता-जा अविरल धारहि जणमण हारहि दिज्जइ धणु वंदीयणहँ। ता जीव णिरंतरे भुअणमंतरे भमइ कित्ति सुंदरजणहँ ।। 4 ।। 1/4 राजा अनंगपाल तोमर का मन्त्री अल्हण साहू कवि श्रीधर कृत चन्द्रप्रभचरित काव्य सुनकर कवि से प्रभावित हो जाता हैजहाँ (अर्थात् जिस ढिल्ली-पट्टन के) सुप्रसिद्ध नरनाथ अनंगपाल ने अपने श्रेष्ठ असिवर से शत्रुजनों के कपाल तोड़ डाले, जिसने हम्मीर-वीर के (समस्त) सैन्य-समूह को बुरी तरह रौंद डाला और बन्दीजनों में चीर-वस्त्र का वितरण किया, जो (अनंगपाल) दुर्जनों की हृदयरूपी पृथिवी के लिए सीरु-हल के फाल के समान तथा जो दुर्नय रूपी मेघों को दूर करने (अथवा दुर्नय करने वाले राजाओं का निरसन करने) के लिए समीर-वायु के समान है, जिसने अपनी प्रचण्ड-सेना से (अथवा उसके भार से) नागर वंशी, अथवा नागवंशी राजा को भी कम्पित कर दिया था और जो मानिनियों के मन में राग उत्पन्न कर देने वाला है। उसी (राजा अनंगपाल) के यहाँ (अर्थात् उसके दुर्ग या राज्य-सभा में) अपने कुलरूपी गगनांगन के लिए तेजस्वी सूर्य के समान, सम्यक्त्व रूपी अलंकार से विभूषित अंगों वाले तथा त्रैलोक्यनाथ के लिए अत्यन्त भक्तिपूर्वक नमस्कार करने वाले अल्हण नाम के एक साहू ने उस कवि (श्रीधर) को (मार्ग में भटकते हुए) देखा। (अल्हण) साहू ने चन्द्रमा के हास्य को भी जीत लेने वाले (उस कवि श्रीधरकृत) चन्द्रप्रभचरित को सुनकर उस (श्रीधर) से कहा“वे ही धन्य हैं, वे ही कुल, बुद्धि, वैभव एवं सम्मान वाले हैं, तथा वे ही श्रीमन्त हैं, जिनकी (शुभ्र) कीर्ति अनवरत रूप से जग में घूमती रहती है और गिरि, सागर एवं पृथिवी-मण्डल को धवलित करती रहती है, वह शुभ्रकीर्ति भी सुकवित्व, त्याग, शास्त्र-श्रवण एवं सत्कीर्तन से ही परिपूर्णता को प्राप्त होती है।" घत्ता- जन-जन को आकर्षित करने वाला धन, जिस (उदार हृदय दानी व्यक्ति) के द्वारा याचकजनों के लिए अविरल-गति से दान में दिया जाता है, उसी सुन्दर दानी व्यक्ति की सत्कीर्ति जीव-लोक में निरन्तर भ्रमण करती रहती है। (4) 6:: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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