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________________ सुर-रमणियणुव वरणेत्तवंतु वायरणुव साहिय वरसुवण्णु चक्कवइ वरपूअप्फलिल्लु दप्पुब्भड-भड-तोणुव कणिल्लु पारावारु व वित्थरिय संखु पेक्खणयरमिव वहु-वेसवंतु।। णाडय-पेक्खण पिव सपुण्णु।। संचुण्णु णाइँ सदं सणिल्लु ।। सविणय-सीसुव बहु-गोरसिल्लु ।। तिहुअणवइ-गुण-णियरुव असंखु घत्ता–णयणमिव स-तारउ सरु व स-हारउ परमाणु कामिणियणुव्व। संगरु व स-णायउ णहु वस रायउ णिहय कंसु णारायणुव्व ।। 3 ।। समृद्ध है। जिसप्रकार नवीन तरुणी वधु का यौवन स्निग्ध होता है, उसी प्रकार वह दिल्ली नगरी भी बड़ी स्निग्ध मनोहर थी। जहाँ की युवतियाँ श्रेष्ठ रेशमी वस्त्र धारण करती हैं, वे ऐसी प्रतीत होती हैं, मानों सुररमणियाँ (देवी) ही हों अथवा प्रेक्षागृह की बहुवेशधारिणी नायिकाएँ ही हों। ___ जिस प्रकार व्याकरण उत्तम-उत्तम वर्गों को साधती हैं (सिद्ध करती है), उसी प्रकार वह ढिल्ली भी अच्छे क्षत्रियादि वर्गों को साधती है। जिस प्रकार नाटक-प्रेक्षणगृह चतुर अभिनेताओं एवं प्रेक्षकों से युक्त होते हैं, उसी प्रकार वह दिल्ली भी प्रज्ञों (पंडितों) सहित थी। चक्रपति (चक्रवर्ती) जिस प्रकार उत्तम पूजाफल सहित होता है, इसी प्रकार वह ढिल्ली भी उत्तम पूग (सुपारी) फल (आदि के वन-उपवन) से युक्त थी। अर्थात् जिस प्रकार उत्तम चूर्ण (अथवा चुन्नी) दर्शनीय होता है, उसीप्रकार वह ढिल्ली भी उत्तम दर्शनीय थी। दर्प से उद्भट भटों की तूणीर जिस प्रकार वाणों से पूर्ण होती है, उसी प्रकार वह ढिल्ली भी धन-धान्य से परिपूर्ण थी। विनय शील शिष्य जिस प्रकार वाणी के रस से पूर्ण होता है, वैसे ही वह ढिल्ली भी प्रचुर गोरस (दूध) से परिपूर्ण थी। जिस प्रकार समुद्र विस्तृत शंख वाला होता है, उसी प्रकार वह दिल्ली भी विस्तृत (जनों की) संख्या वाली थी, जिस प्रकार त्रिभुवन पति भगवान् के असंख्य गुणगण होते हैं, वैसे ही वह ढिल्ली भी असंख्यात गुणसमूह वाले राजा त्रिभुवनपति (तोमर) से युक्त थी।" घत्ता- जो राजा त्रिभुवनपति प्रजाजनों के नेत्रों के लिए तारे के समान, कामदेव के समान सुन्दर, सभा-कार्यों में (निरनतर) संलग्न एवं कामिनीजनों के लिए प्रवर मान का कारण है, जो संग्राम का सेनानायक हैं, तथा जो किसी भी शत्रुराज्य के वश में न होने वाला और जो कंसवध करने वाले नारायण के समान (अतुल बलशाली) है। (3) पासणाहचरिउ :: 5
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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