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________________ 1/3 Describing the all round prosperity of Dhilli-Pattan-the author praises TRIBHUVANAPATI-TOMARA, the ruler of Dhilli-Pattana. रण-मंडव-परिमंडिउ विसाल।। जलपूरिय-परिहालिंगियंगु।। मणियरगण-मंडिय मंदिराई।। णायर-णर-खयर-सुहावणाइँ।। पडिसद्दे दिसि-विदिसिवि फुडति।। जहिँ गयणमंडलालग्गु सालु गोउर-सिरिकलसाहय-पयंगु जहिँ जणमण णयणाणंदिराइँ जहिँ चउदिसु सोहहिँ घणवणाइँ जहिँ समय-करडि घडघड हणंति जहिँ पवण-गमण धाविर तुरंग पविउलु अणंगसरु जहिँ विहाइ जहिँ तिय-पय-णेउर-रउ सुणेवि जहिँ मणहरु रेहइ हट्ट-मग्गु कातंत इव पंजी-समिद्ध णं वारिरासि-भंगुर-तरंग।। रयणायरु सइँ अवयरिउ णाई।। हरिसँ सिहि णच्चइ तणु धुणेवि।। णीसेसवत्थु संचिय समग्गु।। णवकामिणि जोव्वणमिव सणिद्ध ।। 1/3 दिल्ली (वर्तमान दिल्ली)-पट्टन की समृद्धि का वर्णन तथा वहाँ के राजा त्रिभुवनपति (तोमर) की प्रशंसाजिस दिल्ली-पट्टन में गगन-मण्डल से लगा हुआ (आकाश-मण्डल को स्पर्श करने वाला) साल (कोट) है, जो विशाल अरण्य-मण्डप (वृक्षों के घटाघोप) से परिमण्डित (विराजित) है, जिस के (उन्नत) गोपुरों के श्री (शोभा)-युक्त कलश पतंग (सूर्य) को रोकते हैं, जो जल से परिपूर्ण परिखा (खाई) से आलिंगित शरीर वाली है (अर्थात् जो चारों ओर खाई से घिरी हुई है), जहाँ उत्तम मणिगणों (रत्न समूहों) से मण्डित विशाल भवन हैं, जो नेत्रों को आनन्द देने वाले हैं, जहाँ नागरिकों और खेचरों को सुहावने लगने वाले सघन उपवन चारों दिशाओं में सुशोभित हैं, जहाँ मदोन्मत्त करटि-घटा (गजसमूह) अथवा समयसूचक घण्टा या नगाड़ा निरन्तर घड़हड़ाते (गर्जना किया करते) रहते हैं और अपनी प्रतिध्वनि से दिशाओं-विदिशाओं को भी भरते रहते हैं। जहाँ पवन के समान वेग गति से दौड़ने वाले तुरंग (घोड़े-सुशोभित) हैं, मानों वे समुद्र की चपल तरंगें ही हों, जहाँ अनंग नाम का विशाल सरोवर सुशोभित है, जो ऐसा प्रतीत होता है, मानों स्वयं रत्नाकर (समुद्र) ही अवतरित हुआ हो, जहाँ नारियों के पदों के नूपुरों के शब्दों को सुनकर (तथा उन शब्दों को मेघध्वनि समझकर), उनसे हर्षित होकर मयूरगण अपना शरीर धुनते हुए नाचने लगते हैं, जहाँ मनोहर हाट का (बाजार का) मार्ग सुशोभित है, जहाँ के बाजारों में सभी प्रकार की वस्तुओं का पूर्ण संचय रहता है। जिस प्रकार कातन्त्र-व्याकरण अपनी पंजिका (टीका) से समृद्ध है, उसी प्रकार वह दिल्ली भी पदमार्गों से 4 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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