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________________ Colophon संवत् 1577 वर्षे आषाढ सुदि 3 श्री मूलसंघे नंद्याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदि देवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री शुभचंद्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री जिनचंद्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री प्रभाचंद्रदेवास्तत्शिष्य मुनि धर्मचंद्रस्तदाम्नाये खंडेलवालान्वये डिह वास्तव्ये पहाड्या गोत्रे सा० ऊधा तद्भार्या लाडी तत्पुत्र साफलहू (द्वितीय) गूजर - पलहू भार्या सफलादे सा० गूजरभार्या गुणसिरि तत्पुत्र पंचाइण एतैः इदं शास्त्रं नागपुरमध्ये लिखाप्य मुनि धर्मचंद्राय दत्तम् ।। ज्ञानवान् ज्ञानदानेन निर्भयोऽभयदानतः । अन्नदानात् सुखी नित्यं निर्व्याधिर्भेषजाद्भवेत् । । प्रतिलिपिकार प्रशस्ति ( हिन्दी अनुवाद) संवत् 1577 वर्ष की आषाढ़ सुदी 3 श्रीमूलसंघ के नन्द्याम्नाय, बलात्कार-गण, सरस्वती- गच्छ तथा श्री कुन्दकुन्दाचार्याम्नाय के भट्टारक श्री पद्मनन्दी देव, उनके पट्ट् के भट्टारक श्री शुभचन्द्र देव, उनके पट्ट के भट्टारक श्री जिनचन्द्रदेव, उनके पट्ट के भट्टारक श्री प्रभाचन्द्र देव इनके शिष्य मुनि धर्मचन्द्र के अम्नाय | खण्डेलवाल कुल के डेह निवासी पहाड्या गोत्र में साहू ऊधा हुए, जिनकी धर्मपत्नी लाडी, उन दोनों के पुत्र साह फलकू तथा द्वितीय पुत्र गूजर फलकू हुए। साह फलकू की भार्या का नाम सफलादेवी था तथा गूजरभार्या का नाम गुणश्री था। इनका पुत्र पंचाइण हुआ । इन सभी ने मिलकर नागपुर के मध्य इस पार्श्वचरित-शास्त्र को लिखवाकर मुनि धर्मचन्द्र को स्वाध्यायार्थ समर्पित किया । ज्ञानवान् ज्ञानदान् द्वारा, निर्भीक पुरुष अभयदान द्वारा, दाता अन्नदान द्वारा तथा औषधि-दान द्वारा सरोगी को निरोगी बनाकर निरन्तर सुखी बने रहें । 266 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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