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________________ पोयणपुर-12/1/10 वरुणा-11/13/11 सल्लइ - 7/2/9, 11/13/11 सावयवय ( श्रावकव्रत) - 10/8 चक्काउहु-12/9/8 आवश्यक टिप्पणियाँ बुध श्रीधर के अनुसार राजा अरविन्द पोदनपुर का शासक था, जो सांसारिक दुःखों का अनुभव कर निर्ग्रन्थ मुनि बन गया था। कवि ने पोदनपुर की अवस्थिति (Location) नहीं बतलाई है। भीमाडइ-वण- 7/1/18, 10/12/8 मेहेसरचरिउ ( अपभ्रंश, अप्रकाशित) के अनुसार भगवान् ऋषभदेव ने अपने राज्य का विभाजन कर अपने पुत्र बाहुबलि को पोदनपुर का राज्य दिया था । आधुनिक भूगोल शास्त्रियों ने इसे एक पौराणिक स्थान बताया है। डॉ. हेमचन्द्र रायचौधरी के अनुसार वह वर्तमान हैदराबाद के मंजिरा और गोदावरी नदी के संगम के दक्षिण में स्थित आधुनिक बोधन हो सकता है (Political History of Ancient India, Pages, 89, 134 ) । वसुदेवहिण्डी के एक उल्लेख के अनुसार यह खोज तर्कसंगत भी प्रतीत होती है। अशनिघोष (हाथी, पूर्व-भव के मरुभूति का जीव ) की पत्नी मनोहरि नाम की हथिनी तथा पूर्वजन्म के मरुभूति की पत्नी वरुणा । जहाँ सल्लकी जाति के वृक्ष बहुलता से प्राप्त हों, वह सल्लकी-वन कहलाता है । चिकित्सकों के कथनानुसार चिन्तक साधकों की एकाग्रता में ये वृक्ष बड़े सहायक होते हैं। हाथियों के लिये इसके पत्ते सुरुचिपूर्ण होने से वे गजप्रिया तथा गजभक्षा भी कहे जाते हैं। उत्तररामचरित - नाटक ( भवभूति) के तीसरे अंक में तथा पुष्पदन्तकृत णायकुमाचरिउ (7/2/5) में भी इसकी प्रशंसा की गई है। श्रावकों के बारह प्रकार के व्रत बतलाये गये हैं (1) 5 अणुव्रत (2) 3 गुणव्रत (3) 4 शिक्षाव्रत (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य एवं (5) परिग्रह- परमाणुव्रत । (1) दिग्व्रत, (2) देशव्रत एवं ( 3 ) अनर्थदण्ड व्रत । (1) सामायिक, (2) प्रोषघोपवास, (3) अतिथि- संविभाग एवं (4) सल्लेखना । इन बारह प्रकार के व्रतों का निरतिचार पालन करनेवाला ही श्रावक (सद्गृहस्थ) माना गया है। महाकवि बुध श्रीधर के अनुसार हाथ चक्रांकित होने के कारण गन्धिल- देश के राजा बज्रवीर ने अपने पुत्र का नाम चक्रायुध रखा। बाद में इस चक्रायुध ने दीक्षा ग्रहण कर ली । (भीमाटवी-वन) अत्यन्त सघन वन, जहाँ क्रूर जानवर आदि निशंक भ्रमण करते रहते हैं । तिलोयपण्णत्ती या अन्य पाच ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं मिलता। जलणगिरि (ज्वलनगिरि ) - 12/10/8 महाकवि श्रीधर के अनुसार यह पर्वत भीमाटवी वन में था तथा उस पर अनेक प्रकार के पक्षी निवास करते थे। पार्श्वचरित (2/61) के अनुसार वह सुकच्छविजय जनपद में स्थित था । पासणाहचरिउ :: 267
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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